प्रेरक प्रसंग - विनम्रता
प्रेरक प्रसंग - विनम्रता
Share:

महाभारत का प्रसंग है । धर्मयुद्ध अपने अंतिम चरण में था । भीष्म पितामह शैय्या पर लेटे जीवन की अंतिम घडियां गिन रहे थे। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। धर्मराज युधिष्ठिर जानते थे कि पितामह उच्च कोटि के ज्ञान और जीवन संबंधी अनुभव से संपन्न हैं । अतएव वे अपने भाइयों और पत्नी सहित उनके समक्ष पहुंचे और उनसे विनती की - पितामह,”आप विदा की इस बेला में हमें जीवन के लिए उपयोगी ऐसी शिक्षा दें, जो सदैव हमारा मार्गदर्शन करे।“

तब भीष्म ने बडा ही उपयोगी जीवन दर्शन समझाया और नदी और समुद्र के संवाद की कथा सुनाई। नदी जब समुद्र तक पहुंचती है, तो अपने जल के प्रवाह के साथ बडे-बडे वृक्षों को भी बहाकर ले आती है। एक दिन समुद्रने नदी से प्रश्न किया,”तुम्हारा जलप्रवाह इतना शक्तिशाली है कि उसमें बडे-बडे वृक्ष भी बहकर आ जाते हैं पर कभी कोमल घास या बैले नहीं आती। ऐसा क्यों ?

नदी का उत्तर था जब-जब मेरे जल का बहाव तेज़ और प्रलयंकारी होता  है, तब बेलें और दुबे (घास) झुक जाती हैं और मुझे मार्ग दे देती हैं; किंतु वृक्ष अपनी कठोरता के कारण यह नहीं कर पाते, इसलिए मेरा प्रवाह उन्हें बहा ले आता है।

इस छोटे से उदाहरण से हमें सीखना चाहिए कि जीवन में सदैव विनम्र रहें तभी व्यक्ति का अस्तित्त्व बना रहता है। सभी पांडवों ने भीष्म के इस उपदेश को ध्यान से सुनकर अपने आचरण में उतारा और सुखी हो गए।

बुद्ध ग्रह की शांति के उपाय

 

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -