प्रेरक प्रसंग - रास्ते
प्रेरक प्रसंग - रास्ते
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एक बार स्वामी विवेकानंद हिमालय की यात्रा पर थे, तभी उन्होंने वंहा एक वयोवृद्ध तीर्थ यात्री को देखा, जो निराशा से अपने थके हुए पैरों को एवं सर्पीले पहाड़ि रास्तों को देख रहा था | वस्तुतः उन्हें तीर्थ यात्रा के कारण पैदल लंबी दूरी चलना था और वे अपनी उम्र,ठन्डे वातावरण, और थकन से बेहाल हो गए थे| 

तभी व्यावृद्ध ने स्वामीजी से कहा - मेरे बूढ़े पैर लंबी दुरी को कैसे पारकर पाएंगे, अब मै थक चूका हूँ  और चल  नही चल सकता, मेरी छाती में दर्द हो रहा है, कुछ उपाय बताओ कैसे करू मैं तीर्थयात्रा|

स्वामीजी शांति से उनकी बाते सुन रहे थे, और उसका कहना पूरा होने के बाद उन्होंने जवाब दिया की..,

बाबा ..!! किन पैरों के बात करते हो .., इन पैरों की जिन्होंने आपको जीवन भर न जाने कितने अनुभव दिये है.., इस रास्ते की जो हमेशा आपके बुलंद हौसलों के आगे नतमस्तक हुआ है..| यह वही रास्ता था जो आपने अपने पैरो के आगे देखा था.., अब आगे आने वाला रास्ते भी जल्द ही आपके पैरो के निचे होंगा.” | रास्तों की नियति है की, वो पथिक के बुलंद हौसलों के आगे खुद आसान बन राह बन जाते है | 

स्वामीजी के इन शब्दों ने उस वयोवृद्ध यात्री के आत्मविश्वास को चौगुना कर दिया और वो पुनः अपने लक्ष्य (तीर्थयात्रा ) को पूरा करने में चल दिये|      

प्रेरक कथन - अनमोल वचन

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