पेरिस समझौते से भारत की हार : राजेंद्र सिंह
पेरिस समझौते से भारत की हार : राजेंद्र सिंह
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भोपाल : पेरिस में आयोजित जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कोप-21 में हुए समझौते को स्टॉकहोम वाटर प्राइज पुरस्कार से सम्मानित और दुनिया में जलपुरुष के नाम से पहचाने जाने वाले राजेंद्र सिंह ने भारत जैसे विकासशील देशों की हार और अमेरिका की जीत' करार दिया है। पेरिस से लौटने के बाद मध्य प्रदेश के प्रवास पर आए सिंह ने कहा कि पेरिस समझौते से अमेरिका सहित विकसित देशों ने पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति से अपने को मुक्त कर लिया है और विकासशील व गरीब देशों को मिलाकर अपनी इच्छापूर्ति को स्वीकृति दिला ली है। इसे पूंजीवादी देशों की जीत और प्रकृति की रक्षा और सम्मान करने वालों की हार के तौर पर याद किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कोप-21 भारत की हार है, क्योंकि भारत पंच महाभूतों (जल, वायु, उर्जा, खाद्य और आवास) के संरक्षण और संवर्धन में विश्वास रखकर प्रकृति को प्यार और सम्मान से देखता था, इसीलिए भारत में प्रकृति का सबसे कम ह्रास हुआ है। इतना ही नहीं, सबसे कम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने के मामले में हम अपने को सबसे आगे पाते थे।

सिंह ने कहा, हमारी सरकार ने पेरिस में केवल ऊर्जा बनाने के लिए कोयला उपयोग करने की मांग पर सबसे ज्यादा जोर दिया। इससे हमें लगता है कि हम अपने मूल चरित्र और गुरुत्व को भूलकर दुनिया की वैश्वीकरण और बाजारीकरण की चाल में फंसकर कोप-21 में हारकर भारत लौटे हैं। उन्होंने कहा कि कोप-21 में पूरी तरह अमेरिका की जीत हुई है, उस पर अब तक क्षतिपूर्ति का प्रावधान था, यह दंड रियो डी जेनेरियो, कोपहेगन और क्वेटो इन तीनों सम्मेलनों में उनके ऊपर सुनिश्चित किया था और पूरी दुनिया इस समझौते के क्रियान्वयन की विधि और प्रतिबद्धता सुनने के लिए पेरिस में इकट्ठा हुई थी, लेकिन इस सम्मेलन में अमेरिका को इस क्षतिपूर्ति से ही मुक्ति मिल गई है। उन्होंने बताया कि सम्मेलन के शुरू में ऐसा लगता था कि सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (एसडीजी) 2030 को लागू करने का काम यह सम्मेलन करेगा, मगर इस सम्मेलन में एसडीजी-2030 को लागू करने की प्रतिबद्धता की बजाय अमेरिका ने अपनी चाल चली और क्षतिपूर्ति करने से अपने को मुक्त करा लिया।

पेरिस में चले कोप-21 में पूरे एक पखवाड़े तक रहे राजेंद्र सिंह ने बताया कि गैसों के सुपरवीजन और मॉनीटरिंग के लिए विकासशील और गरीब देशों पर बोझ लादने का काम अमेरिका कर रहा था, उसमें जरूर सबको छूट मिली, परिणामस्वरूप यह विकसित देश विकासशील देशों की पर्यावरणीय जांच के लिए अधिकृत नहीं हुए, लेकिन अमेरिका की पूरी तैयारी यह है कि एसडीजी 2030 के क्रियान्वयन की योजना में इसे लेकर आएंगे, जिसका बोझ विकासशील देशों को उठाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में पूरी दुनिया से पहुंचे तो 40 हजार लोग थे, जो पांच श्रेणी में बंटे हुए थे। निर्णयकर्ता ब्लू जोन में मौजूद 400 लोग थे। इनमें 300 लोग ऐसे थे जो सच्चाई बोल रहे थे और उनकी आवाज सुनी जा रही थी, मगर 100 लोग ऐसे थे, जो इस सम्मेलन को अपने भले के लिए उपयोग कर रहे थे। राजेंद्र सिंह ने कहा कि इच्छापूर्ति इन्हीं सौ लोगों की हुई। वहीं 1600 लोग इनकी मदद करने वाले थे, जिनमें अधिकारी, विशेषज्ञ और वैज्ञानिक शामिल थे। इसके अलावा 37 हजार 600 लोग ग्रीन जोन और साइड जोन में थे, जिनकी कोई आवाज नहीं थी।

उन्होंने पेरिस सम्मेलन के अनुभव को साझा करते हुए बताया कि उन्हें इस सम्मेलन में ऐसा लगा मानो भारत के मूल ज्ञान तंत्र जो प्रकृति का सम्मान और प्रकृति को प्यार करने की परंपरा, प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में आगे रहने और प्रकृति के शोषण को कम करने की सीख देता है उसे कमजोर करने वाला था। जलपुरुष ने कहा, इतना ही नहीं, हमारे देश में प्रदूषण फैलाने वाले एक प्रतिशत लोग भी दुनिया में प्रदूषण फैलाने वालों को जीत दिलाने में लगे रहे।

कोप-21 के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए राजेंद्र सिंह ने कहा कि यह सम्मेलन सबके लिए शुभ कार्य करने का संकल्प लेकर आयोजित किया गया था, मगर यह सम्मेलन एसडीजी 2030 के स्थायी विकास का लक्ष्य पूरा करने के लिए मिलकर काम करने की बातचीत की बजाय कुछ व्यापारियों को लाभ पहुंचाने का सम्मेलन बनकर रह गया। कोप-21 में हुए पेरिस समझौते को लेकर जलपुरुष का अपना नजरिया है। वह कहते हैं कि यह समझौता 'लक्ष्मी' की जीत और सरस्वती की हार का समझौता है। अमीर देश और अमीर बनेंगे, गरीब और गरीब होकर भी विकसित कहलाने लगेंगे। आने वाले समय में विकसित देशों को क्षतिपूर्ति नहीं देनी होगी और गरीब देशों का स्वस्थ, सुखी व सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार छिन जाएगा।

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