नई दिल्ली : एनिमेटर और फिल्मकार गीतांजलि राव का कहना है कि भारतीय सिनेमा ने 100 सालों से अधिक समय के अपने सफर के दौरान स्वयं को विश्व स्तर पर ला खड़ा किया है, लेकिन भारत की एनिमेशन फिल्मों को अब भी घरेलू स्तर पर पहचान बनाने की जरूरत है। उन्हें लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना पाने वाली भारतीय एनिमेशन फिल्मों के भारत में दर्शक कम हैं। अंतर्राष्ट्रीय विकलांगजन फिल्म महोत्सव (आईएफएफपीडब्ल्यूडी) में गीतांजलि ने बताया, मुझे यहां से ज्यादा पहचान विदेशों में मिली है। अभी मैं फ्रांसीसी सह-निर्माता के साथ एक फिल्म बना रही हूं, क्योंकि मुझे अपनी फिल्म के लिए भारतीय निर्माता नहीं मिला।
भारतीय एनीमेटर्स की यही स्थिति है। हमारा विशिष्ट काम बाहर के देशों में पसंद किया जाता है क्योंकि वे कहानी सुनाने की एक नई विजुअल भाषा को समझते हैं। राव ने कहा कि भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं पर बनी एनिमेटेड फिल्में भारत से अधिक विदेशों में लोकप्रिय हैं, इन फिल्मों के भारतीय दर्शक काफी कम हैं। गीतांजलि की प्रिंटेड रेनबो और ट्र लव स्टोरी जैसी लघु एनिमेटिड फिल्मों को कॉन्स अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव के विभिन्न संस्करणों में काफी सराहना और सम्मान मिला है। उन्होंने बताया कि भारत में बेहद कम एनिमेशन फिल्मों का निर्माण किए जाने के कई कारण हैं। गीतांजलि ने कहा, भारत में ऐसे दर्शक बेहद कम हैं जो एनिमेशन फिल्में देखना चाहते हैं। लेकिन मैं इसके लिए दर्शकों को दोष नहीं दूंगी, क्योंकि हमारी एनिमेशन फिल्मों का इतिहास अमेरिका, रूस और जापान जैसा नहीं है, जहां ऐसी फिल्मों का निर्माण 1930 के दशक से ही शुरू हो गया था।
उन्होंने कहा कि भारत में एनिमेशन का प्रचलन काफी बाद में शुरू हुआ और इस शैली का यहां ज्ञान नहीं था इसलिए हमें इसे बाहर के देशों से सीखना पड़ा। गीतांजलि ने कहा, भारत में इसकी शुरुआत 1960 में यानी काफी देर से फिल्म डिवीजन के द्वारा हुई। यहां इसके ज्ञान की कमी के कारण इसके ज्ञान को बाहर से प्राप्त करना पड़ा। हमने वॉल्ट डिजनी से इसे सीखा। यही कारण है कि हमारी कई एनिमेशन फिल्मों की शैली हूबहू वॉल्ट डिजनी जैसी है। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत के बड़े बैनर एनिमेशन फिल्में बनाने में रुचि रखते हैं, गीतांजलि ने कहा, अगर हम बच्चों के मनोरंजन या सुपरहीरो को लेकर एनिमेशन फिल्में बनाना चाहें तो कुछ निर्माता इसके लिए तैयार हो जाते हैं क्योंकि व्यावसायिक लाभ की दृष्टि से इन्हें सुरक्षित माना जाता है। गीतांजलि ने कहा कि भारतीयों की धारणा यह है कि एनिमेशन फिल्में केवल बच्चों के लिए होती हैं और ये तभी सफल होती हैं, जब इसमें कोई पौराणिक कथा दर्शाई गई हो या इसे विशाल स्तर पर बनाया गया हो। उनके अनुसार निर्माता एनिमेशन फिल्मों में निवेश करने से घबराते हैं।