स्वतंत्रता के जश्न मे जानिए इन महावीरों के विचार
स्वतंत्रता के जश्न मे जानिए इन महावीरों के विचार
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सशस्त्र विद्रोह की एक अखण्ड परम्परा है। भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना के साथ ही सशस्त्र विद्रोह का आरम्भ हो गया था। जब स्वतंत्रता का यज्ञ हो रहा था तो कई महापुरुषो ने इस यज्ञ मे अपने रक्त की आहुति देकर हिंदुस्तान को आजादी की की फतह दिलाई। तो आइये जानते है उन महापुरुषों के बारे मे।

स्वामी विवेकानंद - जब हिदुस्तान मे धर्म और मजहब के नाम पर बवाल चल रहा था उस समय विवेकानंद ने राष्ट्र उत्थान का बीड़ा उठाया। धर्म और अध्यात्म को राष्ट्रा के उजवाल भविष्य का स्तम्भ बताया। भौतिक उपलब्धियों के बारे विवेकानंद के विचार थे की - आधुनिक भौतिक विज्ञान उन्ही निष्कर्षो तक पहुंचा है, जिन तक भारतीय वेदांत युगो पहले पहुँच चुका है।

महात्मा गांधी- जब स्वतंत्रता का महाकुंभ चल रहा था उस दौरान महात्मा गांधी ने अहिंसा का अश्त्र लेकर अपने प्रयास तेज़ कर दिये थे। सत्या अहिंसा के बलबूते महात्मा ने हिंदुस्तान को फिरंगियों की गुलामी से मुक्त करवाया। वह हमेशा अहिंसा की लड़ाई लड़ते रहे। चमत्कारी व्यक्तित्व के धनी इस महात्मा ने अंग्रेजों की तोपों के साथ चल रही भारतीय देशभक्तों की लड़ाई की दिशा सत्याग्रह के माध्यम से अचानक बदल दी और अंतत: अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।

सरदार वल्लभभाई पटेल- सरदार पटेल भारत के देशभक्तों में एक अमूल्य रत्न थे। वे भारत के राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम में अक्षम शक्ति स्तम्भ थे। आत्म-त्याग, अनवरत सेवा तथा दूसरों को दिव्य-शक्ति की चेतना देने वाला उनका जीवन सदैव प्रकाश-स्तम्भ की अमर ज्योति रहेगा। आधुनिक भारत के निर्माता वल्लभभाई पटेल के विचारो से ओतप्रोत होने से हमारे अंदर नवजीवन का समागम होता है। मेरी एक ही इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक हो और इस देश में कोई अन्न के लिए आंसू बहाता हुआ भूखा ना रहे।

लाला लाजपतराय- लाला लाजपतराय नाम है एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी का जिसने अपने तेजस्वी भाषणों से भारत की जनता में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का जोश फूंका, जिसके माथे पर लगी एक- एक लाठी अंग्रेजी हुकूमत के ताबूत का कील बनी, जिसे इतिहास पंजाब केसरी के नाम से जानता है। साइमन कमीशन वापस जाओ-वापस जाओं।का नारा देकर साइमन कमीशन का बहिस्कार करते हुए मौत को चूमने वाले लाला लाजपत राय थे।

सुभाष चन्द्र बोस- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पश्चिमी शक्तियों के विरुद्ध 'आज़ाद हिंद फ़ौज' का नेतृत्व करने वाले बोस एक भारतीय क्रांतिकारी थे, जिनको ससम्मान से नेताजी भी कहते हैं। जब भारत स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत था और नेताजी आज़ाद हिंद फ़ौज के लिए सक्रिय थे तब आज़ाद हिंद फ़ौज में भरती होने आए सभी युवक-युवतियों को संबोधित करते हुए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने कहा, "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।

राम प्रसाद बिस्मिल- पंडित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ किसी परिचय के मोहताज नहीं। उनके लिखे ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ जैसे अमर गीत ने हर भारतीय के दिल में जगह बनाई और अंग्रेज़ों से भारत की आज़ादी के लिए वो चिंगारी छेड़ी जिसने ज्वाला का रूप लेकर ब्रिटिश शासन के भवन को लाक्षागृह में परिवर्तित कर दिया।

चन्द्रशेखर आजाद- चन्द्रशेखर आजाद के हृदय में क्रांति की ज्वाला बहुत अल्पायु से ही ज्वलंत थी। चन्द्रशेखर ने बचपन में ही स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा ले लिया था। गांधीजी के असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने विदेशी समानों का बहिष्कार किया था। इसी असहयोग आंदोलन के दौरान उन्हें पहली बार 15 वर्ष की आयु में सजा मिली।

शहीद भगत सिंह- देश की स्वतंत्रता के लिए अखिल भारतीय स्तर पर क्रान्तिकारी दल का पुनर्गठन करने का श्रेय सरदार भगतसिंह को ही जाता है। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। उनका मन इस अमानवीय कृत्य को देख देश को स्वतंत्र करवाने की सोचने लगा। भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी संगठन तैयार किया।

अब्दुल कलाम- भारत रत्न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम हमारे देश के प्रख्यात वैज्ञानिक और भारत गणराज्य के राष्ट्रपति रह चुके थे। अब्दुल कलाम एक तपस्वी होने के साथ-साथ एक कर्मयोगी भी थे। प्रारम्भिक जीवन में अभाव के बावजूद वे किस तरह राष्ट्रपति के पद तक पहुँचे ये बात हम सभी के लिये प्रेरणास्पद है। उनकी शालीनता, सादगी और सौम्यता किसी महापुरुष से कम नही थी। डॉ. कलाम भारत ने हमेशा से खुली आँखों से सपने देखने की सीख देते रहे।

संदीप मीणा 

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