4 सालों में हमने 41 जवानों को खो दिया सियाचीन में
4 सालों में हमने 41 जवानों को खो दिया सियाचीन में
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नई दिल्ली : देश की सबसे उंची सीमा बर्फीली सियाचीन ग्लेशियर पर जिन सैनिकों की पोस्टिंग होती है, उन्हें वहां तीन महीने से अधिक नही रखा जाता है। अब तक 4 सालों में हमने अपने 41 जवानों को खो दिया है। यह जानकारी रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में दी।

इसमें सबसे ज्यादा इस साल 18 फरवरी को हुए 14 सैनिकों की मौत है। रक्षा मंत्री ने बताया कि 2015 में भी 9, 2014 में 8 औऱ 2013 में 10 सोनिकों की ग्लेशियर में हिमस्खलन से जानें गई है। पर्रिकर ने बताया कि सियाचिन में निगरानी के लिए सेना मानव रहित एरियल व्हीकल, विभिन्न प्रकार के रडार सहित अन्य अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी उपकरणों का इस्तेमाल करती है।

आगे उन्होने कहा कि युद्ध की आशंका, जमीनी हालात व अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सियाचीन में केवल आवश्यक सैनिकों की ही तैनाती की जाती है। पर्रिकर ने कहा कि सियाचिन ग्लेशियर में चौकियां विधिवत मानचित्र बनाने के बाद ही स्थापित की जाती हैं ताकि हिमस्खलनों के खतरे से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसकी नियमित आधार पर समीक्षा की जाती है।

ऐवेलॉन्च विक्टिम डिटेक्टर्स, विशेष पर्वतारोहण उपकरण, बर्फ काटने की मशीन लगाने जैसे बचाव उपकरण लगाने के साथ साथ पीड़ितों का पता लगाने और उन्हें बचाने के लिए ऐवेलॉन्च रेस्क्यू डॉग भी लगाए जाते हैं। हताहतों को बेहतरीन चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जाती है।

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