भारतीय संस्कृति में चूड़ियों का महत्व
भारतीय संस्कृति में चूड़ियों का महत्व
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रसोई मेँ रोटियाँ बनाते खनकती हैँ चूड़ियाँ, घर को बुहारते हाथोँ मेँ खनकती हैं चूड़ियाँ, बच्चे को दुलारती माँ की चूड़ियाँ. चूड़ियाँ एक पारम्परिक गहना है जिसे भारत में अधिकतर महिलाएँ कलाई में पहनती हैं. चूड़ी नारी के हाथ का प्रमुख गहना है. भारतीय सभ्यता और समाज में चूड़ियों का महत्वपूर्ण स्थान है. हिंदू समाज में यह सुहाग का चिह्न मानी जाती है. भारत में जीवितपतिका नारी का हाथ चूड़ी से रिक्त नहीं मिलेगा.

भारत के विभिन्न प्रांतों में विविध प्रकार की चूड़ी पहनने की प्रथा है. कहीं हाथीदाँत की, कहीं लाख की, कहीं पीतल की, कहीं प्लास्टिक की, कहीं कांच की, आदि. आजकल सोने चाँदी की चूड़ी पहनने की प्रथा भी बढ़ रही है. इन सभी प्रकार की चूड़ियों में अपने विविध रंग रूपों और चमक दमक के कारण कांच की चूड़ियों का महत्वपूर्ण स्थान है. सभी धर्मों एवं संप्रदायों की स्त्रियाँ कांच की चूड़ियों का अधिक प्रयोग करने लगी हैं.

हिन्दू परिवारों में सदियों से यह परम्परा चली आ रही है कि सास अपनी बडी़ बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुखी और सौभाग्यवती बने रहने के आशीर्वाद के साथ वही कंगन देती है, जो पहली बार ससुराल आने पर उसकी सास ने दिए थे. पारम्परिक रूप से ऐसा माना जाता है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूडिय़ों से भरी रहनी चाहिए. परम्परा के साथ जब चूड़ियाँ फैशन बन जाती है तब भी उसकी खनक पर कोई असर नहीं पड़ता. वो कल भी घर का मधुर संगीत थी आज भी उसी धुन और खनक के साथ घर संभालती है.

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