'मुझे बेटे की मौत से भी ज्यादा दुख हुआ...', आखिर किस बात से इतना आहत हुए सभापति जगदीप धनखड़?
'मुझे बेटे की मौत से भी ज्यादा दुख हुआ...', आखिर किस बात से इतना आहत हुए सभापति जगदीप धनखड़?
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नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि जयंत चौधरी को मंच देने के लिए जयराम रमेश तथा अन्य कांग्रेस सांसदों द्वारा अपने खिलाफ 'अपमानजनक' आचरण प्रस्तुत करने से वह इतने आहत हो गए थे कि उन्होंने पद छोड़ने का मन बना लिया था. दरअसल, जयंत चौधरी अपने दादा एवं पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने के सरकार के फैसले पर उच्च सदन को संबोधित कर रहे थे. जब वह बोलने के लिए उठे तो मल्लिकार्जुन खड़गे तथा अन्य कांग्रेस सांसदों ने राज्यसभा के सभापति से उन्हें वक़्त देने पर आपत्ति व्यक्त की. 

जगदीप धनखड़ ने कहा कि इस प्रकरण से उन्हें अपने जवान बेटे की मौत से भी अधिक दुख हुआ है. उन्होंने जयराम रमेश पर हमला बोलते हुए कहा कि वह अपने इस आचरण के कारण उच्च सदन का सदस्य बनने के लायक नहीं हैं. कांग्रेस सांसदों का तर्क यह था कि सभापति ने न तो सदन को यह सूचित किया कि वह कब जयंत सिंह को मंच देंगे तथा न ही सदन में दिनभर होने वाले कामकाज की सूची में पूर्व प्रधानमंत्रियों पीवी नरसिम्हा राव एवं चौधरी चरण सिंह और कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित करने के सरकार के फैसले पर बयान देने के लिए किसी के नाम का जिक्र था.  

इसके चलते, जयराम रमेश ने कुछ टिप्पणियां कीं तथा जयंत चौधरी से पूछा कि वह कहां जाना चाहते हैं? रमेश ने यह संकेत दिया कि जयंत की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल विपक्ष के साथ संबंध तोड़ने एवं लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा के साथ गठबंधन करने के करीब है. इससे सभापति धनखड़ नाराज हो गए. उन्होंने जयराम रमेश को सदन में रहने के अयोग्य बताया. बाद में अर्थव्यवस्था पर सरकार के श्वेत पत्र पर चर्चा के पश्चात  राज्यसभा सभापति ने फिर कांग्रेस नेता पर हमला बोला तथा उनके व्यवहार की निंदा की. शुरुआती हंगामे के पश्चात् उन्होंने कहा, 'मैंने सुना कि जयराम रमेश ने जयंत से क्या कहा...आप (रमेश) ऐसे व्यक्ति हैं जो श्मशान घाट पर दावत कर सकते हैं. यह सच है कि आप (रमेश) इस कदाचार के लिए इस सदन का हिस्सा बनने के लायक नहीं हैं'.

कांग्रेस सांसदों के विरोध करने पर जगदीप धनखड़ ने विपक्ष के नेता एवं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को बोलने की इजाजत दी. खड़गे ने कहा कि नेताओं को भारत रत्न से सम्मानित करने के सरकार के फैसले पर कोई बहस नहीं हुई. उन्होंने कहा, 'मैं सभी को (भारत रत्न से सम्मानित होने वाले नेताओं को) सलाम करता हूं. किन्तु यदि कोई सदस्य कोई मुद्दा उठाना चाहता है, तो आप (सभापति जगदीप धनखड़) पूछते हैं किस नियम के तहत. (मैं जानना चाहता हूं) किस नियम के तहत उन्हें (जयंत सिंह) बोलने की अनुमति दी गई है? हमें भी अनुमति दीजिए. एक तरफ आप नियमों की बात करते हैं...आपके पास विवेक है...उस विवेक का इस्तेमाल विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए, जब आप चाहें तब नहीं.'

मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सभापति 'नियमों का पालन नहीं कर रहे'. उन्होंने कहा कि यदि भारत रत्न पर चर्चा सदन के एजेंडे में सम्मिल्लित होती, तो हर कोई (विपक्षी नेता) इसमें सम्मिल्लित होता. इस पर जगदीप धनखड़ ने खड़गे की आपत्तियों पर नाखुशी जताई तथा कांग्रेस नेताओं पर चरण सिंह और उनकी विरासत का अपमान करने का भी आरोप लगाया. केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने आश्चर्य जताया कि कांग्रेस चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का 'विरोध' कर रही है. रूपाला ने कहा, 'विपक्ष के नेता आसन को चुनौती दे रहे हैं तथा वह भी ऐसे मौके पर...यह कांग्रेस का असली चेहरा है...कांग्रेस बेनकाब हो गई है'. सदन के नेता और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने आसन का 'अपमान' करने के लिए खड़गे से माफी की मांग की. 

तत्पश्चात, जगदीप धनखड़ ने कुछ मिनट बोलने के लिए जयंत सिंह से मिला नोटिस पढ़ा तथा रालोद नेता को अपनी बात पूरी करने की अनुमति दी. विपक्षी सांसदों ने कहा कि अगर आसन ने आरम्भ में ही नोटिस और जयंत को बोलने की अनुमति देने की वजह से के बारे में स्पष्ट कर दिया होता तो यह अप्रिय स्थिति पैदा नहीं होती. बाद में अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार के श्वेत पत्र पर चर्चा के पश्चात् धनखड़ ने फिर अपनी पीड़ा व्यक्त की. उन्होंने सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा, 'आज मेरे लिए यह एक दुखद दिन था. मैं आप सभी का संरक्षण चाहता हूं. कभी-कभी सम्मानजनक रास्ते पर चलना मुश्किल हो जाता है. दुख के साथ मैं आपके ध्यान में एक विचारणीय विषय लाता हूं...मैं आपके साथ एक महत्वपूर्ण विषय साझा करना और चर्चा करना चाहता हूं'.

आगे उन्होंने कहा, ' मुझे इस व्यवहार (कांग्रेस नेताओं के) की उम्मीद नहीं थी, यह शर्मनाक एवं दुखद था. यह हमारी गरिमा के खिलाफ था. हमारा बर्ताव इतना निम्न था कि मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई. मेरे मन में कई प्रकार के विचार आए, मैंने पद छोड़ने के बारे में भी सोचा. किसान का बेटा होने के नाते मैंने काफी मुश्किल वक़्त देखा है. मैंने अपना जवान बेटा खो दिया. किन्तु आज का दर्द उससे भी कहीं ज्यादा था. जब जयंत चौधरी बोल रहे थे, तो जयराम रमेश क्या कह रहे थे? वह जो कह रहे थे, मैंने सुना है. जहां जाना है जाओ... श्मशान घाट पर उत्सव नहीं मनाया जाता है. इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. जब नेताओं के सम्मान की बात आती है तो हमें संवेदनशील होना चाहिए. यह बात सदन में नहीं रहेगी, बाहर करोड़ों लोगों तक जाएगी. ऐसा नहीं होना चाहिए'.

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