आखिर क्यों लगता है कुंभ, जानिए रोचक कथा
आखिर क्यों लगता है कुंभ, जानिए रोचक कथा
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हम सभी इस बात से वाकिफ ही हैं कि किसी भी धार्मिक प्रयोजन हेतु भक्तों का सबसे बड़ा संग्रहण कुंभ मेला हैं. जी हाँ, कहते हैं कुंभ का पर्व हर 12 साल के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर किया जाता है और हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम जहां पर गंगा यमुना और सरस्वती मिल जाती हैं. ऐसे में बात करें ज्योतिष की तो उनके अनुसार जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन करते हैं. इसी के साथ प्रयाग का कुम्भ मेला सभी मेलों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. आइए बताते हैं कुंभ का अर्थ. 

कुंभ का अर्थ - कहते हैं कलश, ज्योतिष शास्त्र में कुम्भ राशि का भी यही चिह्न हैं और कुंभ मेले की पौराणिक मान्यता अमृत मंथन से जुड़ी हुई हैं. इसी के साथ देवताओं और राक्षसों ने समुद्र के मंथन तथा उसके द्वारा प्रकट होने वाले सभी रत्नों को आपस में बांटने का निर्णय किया. उस समय समुद्र के मंथन द्वारा जो सबसे मूल्यवान रत्न निकला वह था अमृत, और उसे ही पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच लड़ाई हुई थी. कहा जाता है असुरों से अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वह पात्र अपने वाहन गरुड़ को दे दिया था और असुरों ने जब गरुड़ से वह पात्र छीनने का प्रयास किया तो उस पात्र में से अमृत की कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में ​जाकर गिर गईं थीं.

इसी के बाद से 12 सालों के अंतराल पर इन स्थानों पर कुम्भ का मेला आयोजित किया जाता हैं. कहते हैं इन देव दैत्यों का युद्ध सुधा कुंभ को लेकर 12 दिन तक 12 स्थानों में चला और उन 12 स्थलों में सुधा कुंभ से अमृत छलका जिनमें से चार स्थल मृत्युलोक में हैं और शेष आठ इस मृत्युलोक में न होकर अन्य लोकों में माने जाते हैं. कहते हैं 12 साल के मान का देवताओं का बारह दिन होता हैं.

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