क्यों मनाया जाता है कुम्भ का मेला?
क्यों मनाया जाता है कुम्भ का मेला?
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पौराणिक कथाओं अनुसार ऐसा माना जाता है की समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत पर अधिकार को लेकर देवता और राक्षसो के बीच लगातार बारह दिन तक युद्ध चला था. वो 12 दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के समान हैं. कुम्भ की वास्तविक संखिया भी 12 होती हैं. इन 12 कुम्भों में से चार कुम्भ पृथ्वी लोक पर और आठ कुम्भ देवलोक में मनाये जाते है. पृथ्वी पर ये कुम्भ वही आयोजित किये जाते है जहां देवता और राक्षसों के युद्ध के दौरान अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदे निकलकर पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरी थी. वह चार स्थान है, प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक.

इनमे से प्रयाग गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम स्थल के किनारे और हरिद्वार गंगा नदी के किनारे हैं, वहीं उज्जैन शिप्रा नदी और नासिक गोदावरी नदी के तट पर बसा हुआ है. देवताओ और राक्षसो के इस युद्ध के दौरान भगवान सूर्य, चंद्र और शनि आदि देवताओं ने इस अमृत कलश की रक्षा की थी, अतः उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, तब कुम्भ का योग होता है और चारों पवित्र स्थलों पर प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराल पर क्रमानुसार कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है.

कुम्भ का इतिहास :- पृथ्वीलोक पर कुम्भ मेले का आयोजन आदि कल से किया जा रहा है, लेकिन इस मेले के प्रथम लिखित प्रमाण महान बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग के द्वारा लिखी गई बुक से मिले है. उनके इस महा लेख में 8 शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के शासन में होने वाले कुम्भ का प्रसंगवश वर्णन किया गया है।

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