जानिये मुख्यमंत्री के किस सवाल का जवाब नहीं दे पाए प्रदेश के आला अफसर :मध्यप्रदेश
जानिये मुख्यमंत्री के किस सवाल का जवाब नहीं दे पाए प्रदेश के आला अफसर :मध्यप्रदेश
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भोपाल: मंगलवार को मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के आला अफसर के साथ बैठक की. बैठक के दौरान ख्यमंत्री के एक सवाल पर सभी अफसर के पास कोई जवाब नहीं था. सीएम ने लोकायुक्त के छापों और भ्रष्टाचारियों के पकड़े जाने के बाद भी उन पर अभियोजन की कार्रवाई में हो देरी के बारे में पूछा था. अकेले लोकायुक्त में ऐसे प्रकरणों की संख्या 400 से ज्यादा है, जो कार्रवाई की सिफारिश के बाद भी सालों से ठंडे बस्ते में पड़े हैं. 22 मामले तो ऐसे हैं जिनमें भ्रष्टाचार साबित होने के बाद भी अभियोजन की अनुमति नहीं मिली और संबंधित अफसर रिटायर हो गए.

लोकायुक्त सूत्रों के मुताबिक छापे की कार्रवाई के बाद पहले तो दस्तावेजों के परीक्षण और विभागीय जांच में ही डेढ़ से दो साल लग जाते हैं, इसके बाद जब आरोपी अधिकारी को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया जाता है तो वे कमियां दिखाकर आवेदन पर आवेदन लगाते रहते हैं.

इससे मामला और ज्यादा लंबित होता जाता है. फिर शासन के नियमों के मुताबिक प्रकरण को विभागीय जांच के लिए भेजना होता है. ऐसा इसलिए कि यदि विभाग ने कोई राशि नकद खर्च करने के लिए संबंधित अफसर या कर्मचारी को दी हो तो उसके लेन-देन के दौरान किसी को गलत ढंग से न फंसा दिया जाए.

इसलिए मूल विभाग से अनुशंसा का नियम है. इस तरह मिलती है अनुमति विभाग से अनुमति के लिए लोकायुक्त चालान की प्रति विभाग को भेजता है तो संबंधित विभाग के पीएस पूरी फाइल पढ़ते हैं. इसके बाद 10 से 20 पेज में लिखे आरोप को पढ़कर अनुमति और अनुशंसा दी जाती है.

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