ज्ञान- विज्ञान :हमारे मौलिक अधिकारों पर एक नजर -
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संविधान के भाग III- भारत के नागरिकों को कुछ बुनियादों अधिकारों की गारंटी देता है मौलिक अधिकारों के रूप में जाना जाता है जो संविधान के प्रावधानों के अधीन और न्यायोचित हैं.मौलिक अधिकारों को छ भागों में विभाजित किया गया है जिनमें, संवैधानिक उपचारों का अधिकार, स्वतंत्रतता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार और संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल हैं।

समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18):
अनुच्छेद 14 समानता के विचार का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि कोई भी राज्य भारत की सीमाओं के अंदर सभी व्यक्तियों को कानून का समान संरक्षण प्रदान करेगा। यह अनुच्छेद जाति, रंग या राष्ट्रीयता के भेदभाव किए बिना कानून के समक्ष समातनता की गारंटी देता है।

अनुच्छेद 15 केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है:
अनुच्छेद 15 इस बात का उल्लेख करता है कि केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, विकलांगता, जन्म स्थान, या इनमें से किसी के भी आधार पर भेदभाव पर नहीं होगा । हालांकि, अनुच्छेद 19 के खंड (1) के उपखंड (g) में राज्य को महिलाओं और बच्चों या अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति सहित सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से राज्य को रोका नहीं गया है। इस अपवाद का प्रावधान इसलिए किया गया है क्योंकि इसमें वर्णित वर्गो के लोग वंचित माने जाते हैं और उनको विशेष संरक्षण की आवश्यकता है।

सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता (अनुच्छेद 16):
अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोजगार या कार्यालय के संबंध में अवसर की समानता की गारंटी देता है और राज्य को किसी के भी खिलाफ केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है। यह राज्य या केन्द्र शासित प्रदेशों में रोजगार या नियुक्ति के लिए उस राज्य या केन्द्र शासित प्रदेशों के भीतर एक निवास के रूप में किसी भी आवश्यकता के लिए संसद को एक कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है। किसी भी पिछड़े वर्ग के नागरिकों का सार्वजनिक सेवाओं में आरक्षण का प्रावधान बनाने के लिए यह राज्य को विशेष अधिकार प्रदान करता है।

अस्पृश्यता (अनुच्छेद 17) का उन्मूलन:
अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है और इससे उत्पन्न होने वाली किसी भी प्रथा पर रोक लगाता है। अस्पृश्यता एक सामाजिक प्रथा या व्यवहार को दर्शाती है जिसमें कुछ दलित वर्गों को उनके जन्म से ही हेय की दृष्टि से देखा जाता है और उनके खिलाफ जिंदगी के स्तर पर भेदभाव किया जाता है।

अनुच्छेद 18 राज्य को किसी को भी कोई पदवी दे्ने से रोकता है तथा कोई भी भारतीय नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई पदवी स्वीकार नहीं कर सकता। हालांकि सैन्य या शैक्षणिक विशिष्टता को इससे बाहर रखा गया है।

स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19): अनुच्छेद 19 भारत के नागरिकों को नागरिक अधिकारों के रूप में छः प्रकार की स्वतंत्रताओं की गारंटी देता है, इनमें भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संघों की स्थापना के लिए एसेंबली की स्वतंत्रता आंदोलन की स्वतंत्रता, निवास और व्यवस्थित होने की स्वतंत्रता, पेशा, व्यवसाय, व्यापार या कारोबार की स्वतंत्रता शामिल हैं । 

अपराध के लिए सजा के संबंध में संरक्षण (अनुच्छेद 20) :
कोई भी व्यक्ति जो एक अपराध करता है, उसको अपनी अत्यधिक सजा के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। यह अनुच्छेद अपराधों के आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए शामिल किया है। इसके अलावा इस अनुच्छेद को आपातकाल की स्तिथि में भी निलंबित नहीं किया जा सकता है।  

जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) का संरक्षण:
अनुच्छेद 21, जो विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार होने वाली कार्यवाही को छोड़ कर, जीवन या व्यक्तिगत संवतंत्रता में राज्य के अतिक्रमण से बचाता है। हालांकि, अनुच्छेद 21 में विधायी सूचियों को पढ़ने के साथ अनुच्छेद 246 के तहत राज्य की शक्तियों की एक सीमा तय की गयी है। इस प्रकार, अनुच्छेद 21 एक पूर्ण अधिकार के रूप में जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता नहीं देता है लेकिन स्वयं के अधिकारों की गुंजाइश को सीमित करता है।

मनमानी गिरफ्तारी और निरोध (अनुच्छेद 22) के खिलाफ निगरानी:
सबसे पहले, अनुच्छेद 22 हर किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले उसकी गिरफ्तारी के कारण के बारे में सूचित करने की गारंटी देता है। दूसरी बात, उसको परामर्श करने का अधिकार है तांकि अपने पसंद के वकील द्वार स्वंय का बचाव किया जा सके। तीसरा, गिरफ्तार किये गये तथा हिरासत में लिये गये हर व्यक्ति को चौबीस घंटे की अवधि के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा और केवल तभी तक हिरासत में रखा जाएगा जब तक तक अदालत का आदेश होगा।

शोषण के खिलाफ अधिकार, (अनुच्छेद 23-24):
अनुच्छेद 23 मानव तस्करी के खिलाफ प्रतिबंध लगाता है जिसमें महिलाएं, बच्चे, भिखारी या अन्य मानव गरिमा के खिलाफ युद्ध या अतिक्रमण शामिल है। अनुच्छेद 24 में किसी भी खतरनाक रोजगार में 14 साल से कम उम्र के बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है। यह  अधिकार मानव अधिकार अवधारणाओं और संयुक्त राष्ट्र के मानदंडों का पालन करता है।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28):
अनुच्छेद 25 और 26 धार्मिक सहिष्णुता के सिद्धांतों का प्रतीक है और भारतीय लोकतंत्र की धर्मनिरपेक्ष तरीके से सेवा करता है अर्थात् सभी धर्मों का बराबर सम्मान करता है। अनुच्छेद 25 विवेक और नि: शुल्क व्यवसाय, अभ्यास और धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 26 धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता को सुनिश्चत करने में मदद करता है जो सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य, हर धार्मिक संप्रदाय या किसी भी वर्ग से संबंधित होता है। अनुच्छेद 27 किसी धर्म विशेष के प्रचार के लिए या रखरखाव के धार्मिक खर्च के लिए करों का भुगतान नहीं करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। अनुच्छेद 28 राज्य के शिक्षण संस्थानों में धार्मिक दिशा- निर्देशों पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाता है।

अल्पसंख्यकों के लिए विशेषाधिकार (सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार) (अनुच्छेद 29-30)
अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा प्रदान करता है। एक शैक्षिक संस्था द्वारा एक अल्पसंख्यक समुदाय अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति का संरक्षण कर सकता है। अनुच्छेद 30 सभी अल्पसंख्यंकों को धार्मिक और भाषाई आधार पर अपनी शैक्षिक संस्थाएं स्थापित करने और चलाने का अधिकार प्रदान करता है।
संविधान के 44वें संशोधन में संपति के अधिकार को समाप्त करने का उल्लेख किया गया है जो अब एक कानूनी अधिकार बन गया है।

संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32-35):
संवैधानिक उपचारों का अधिकार नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन या उल्लंघन के विरुद्ध सुरक्षा के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में जाने की गारंटी देता है। एक मौलिक अधिकार के रूप में, अन्य मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए गारंटी प्रदान करता है, संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को इन अधिकारों के रक्षक के रूप में नामित किया गया है। अनुच्छेद 33 सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के साथ सशस्त्र बलों या जबरन लगाये गये आरोपों के लिए एफआरएस के आवेदन को संशोधित करने के लिए संसद को अधिकार प्रदान करता है। दूसरी ओर, अनुच्छेद 35 में यह  निर्दिष्ट है कि कुछ विशेष एफआरएस को प्रभावी बनाने के लिए कानून बनाने की शक्ति राज्य विधानसभाओं के पास नहीं होगी यह अधिकार केवल संसद के पास होगा।

इसलिए, मौलिक अधिकार एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं क्योंकि पूर्ण, बौद्धिक, नैतिक और आध्यात्मिक स्थिति को प्राप्त करने के लिए यह एक व्यक्ति के लिए सबसे जरूरी हैं। इसलिए, संविधान में मौलिक अधिकारों के शामिल किए जाने का उद्देश्य एक कानूनी सरकार की स्थापना करना था जिससे एक न्यायसंगत समाज का निर्माण, व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा और एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना हो सके।

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