हाजी अली की दरगाह जाने पर झोलियाँ भर जाती है खुशियों से
हाजी अली की दरगाह जाने पर झोलियाँ भर जाती है खुशियों से
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हाजी अली की दरगाह मुम्बई के दक्षिण में वरली के किनारे एक छोटे से टापू पर बनी है जो मुख्य सड़क से लगभग 400 मी0 की दूरी पर है। यह मुम्बई का एक अत्यन्त प्रसिद्ध स्थान है, जो शहर के बीचो बीच स्थित है। यह इस्लामिक वास्तुकला का एक अत्यन्त सुन्दर नमूना है जिसमें सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र स्थापित है।

हाजी अली दरगाह एक धनवान मुस्लिम व्यापारी सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में सन् 1431 में बनायी गयी थी जिन्होने मक्का के तीर्थयात्रा के पहले सारे सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया था। वैसे तो यहाँ पर रोजाना हजारो श्रद्धालु आते है परन्तु हर वृहस्पतिवार व शुक्रवार को इस दरगाह में दर्शन करनें के लिए लगभग 40000 से ज्यादा लोग जमा होते है। शुक्रवार को अकसर यहाँ कव्वाली का भी आयोजन किया जाता है।

इस दरगाह तक पहुँचने का रास्ता बहुत कुछ ज्वार भाटाओं पर निर्भर करता है। चूंँकि यहाँ तक आने वाली पक्की सड़क की ऊँचाई बहुत कम है और दोनो तरफ समुन्दर है, अतः जब भी ऊँचा ज्वार आता है तो यह सड़क लुप्त हो जाती है, अतः यहाँ तक जाने का रास्ता हल्के ज्वार के समय में ही सम्भव है।

यह सफेद रंग की दरगाह 4500 वर्गमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है और दरगाह के निकट 85 फुट ऊँची मिनार है इसके अन्दर मजार को लाल व हरे रंग की चादर से ढका गया है। इस मजार के चारों ओर चांदी के डंडों से बना एक दायरा है, दरगाह मे संगमरमर के बने कई खम्बे हैं जिन पर रंगीन कांच से कलाकारी की गयी है तथा इसके उपर अल्लाह के 99 नाम लिखे गये हैं। यहाँ पर महिलाओं व पुरुषों के प्रार्थना के लिए अलग-अलग कमरे है।

हाजी अली साहब के मुरीद केवल मुम्बई में ही नही वरन् पूरी दुनिया में फैले हैं और हर साल उनके लाखों मुरीद उनके दर्शन के लिये यहाँ पर आते है तथा अपनी झोलियाँ खुशियों से भर ले जाते है।

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