जीवन में हर कार्य किसी न किसी के द्वारा सिखाया जाता है. इसलिए जीवन में कोई ना कोई गुरु होना भी जरुरी है. जो आपको सिखाता है वह 'गुरु' कहलाता है. साधारणतया गुरु का महत्व अध्यात्म में सर्वोपरि माना गया है जिसमें दीक्षा किसी न किसी रूप में दी जाकर शिष्य की देखरेख उसके कल्याण की भावना से की जाती है. इसलिए अध्यात्म के लिए गुरु बनाने जरुरी हैं जो आपको सही मार्ग दिखाते हैं. सभी धर्मों में गुरु का अपनी-अपनी तरह से महत्व है.
वे लोग बड़े सौभाग्यशाली होते हैं जिन्हें किसी सद्गुरु से दीक्षा मिली हो. वे लोग जिन्हें गुरु उपलब्ध नहीं है और साधना करना चाहते हैं उनका प्रतिशत समाज में अधिक है. तो आइये जानते हैं जब आपके नहीं हो कोई गुरु तो कैसे इस दिन को सफल बनाएं.
कैसे करें पूजन :
* सर्वप्रथम एक श्वेत वस्त्र पर चावल की ढेरी लगाकर उस पर कलश-नारियल रख दें.
* उत्तराभिमुख होकर सामने शिवजी का चित्र रख दें.
* शिवजी को गुरु मानकर निम्न मंत्र पढ़कर श्रीगुरुदेव का आवाहन करें-
'ॐ वेदादि गुरुदेवाय विद्महे, परम गुरुवे धीमहि, तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्..'
हे गुरुदेव! मैं आपका आह्वान करता हूं.
* फिर यथाशक्ति पूजन करें, नैवेद्यादि आरती करें तथा 'ॐ गुं गुरुभ्यो नम: मंत्र' की 11, 21, 51 या 108 माला करें.
* यदि किसी विशेष साधना को करना चाहते हैं, तो उनकी आज्ञा गुरु से मानसिक रूप से लेकर की जा सकती है.
विशेष- 16 जुलाई को आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा तथा चंद्र ग्रहण है. अत: ग्रहण के दौरान मंत्रों का जप किया जा सकता है तथा विशेष लाभ प्राप्त किया जा सकता है.