उज्जैन। भैरव को भगवान शंकर का पूर्ण रूप माना गया है। भगवान शंकर के इस अवतार से हमें अवगुणों को त्यागना सीखना चाहिए। काल भैरव के बारे में प्रचलित है कि यह अति क्रोधी, तामसिक गुणों वाले तथा मदिरा का सेवन करने वाले भगवान है। इस अवतार का मूल उद्देश्य है कि मनुष्य अपने सारे अवगुण जैसे मदिरापान, तामसिक भोजन, क्रोधी स्वभाव, आदि भैरव को समर्पित कर, धर्म का आचरण करें। काल भैरव अवतार से हमें यह भी शिक्षा मिलती है की हर कार्य सोच विचार कर करना ही ठीक रहता है बिना विचारे कार्य करने से पद व प्रतिष्ठा धूमिल होती है।
भगवान काल भैरव तंत्र मंत्र के देवता है। माना जाता है कि इनकी कृपा के बिना तंत्र साधना अधूरी रहती है। शिव और शक्ति दोनों संप्रदायों में भगवान भैरव की पूजा महत्वपूर्ण होती है, इन के 52 रूप माने जाते हैं। इनकी कृपा प्राप्त कर के भक्त निर्भय और सभी कष्टों से मुक्त हो जाते हैं, काल भैरव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं वह सृष्टि की रचना पालन और संहार करते हैं। काल भैरव की सबसे प्रसिद्ध मूर्ति उज्जैन में है जहां पर भगवान काल भैरव खुद मदिरापान करते हैं भक्तजन उनके लिए मदिरा लेकर आते हैं और वहां के पंडितों द्वारा श्री काल भैरव को प्रतिदिन मदिरापान कराया जाता है।
भगवान काल भैरव को मदिरा पिलाने का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। यह कब कैसे और क्यों शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। यहां आने वाले भक्त और पंडितों का कहना है कि वह बचपन से भैरव बाबा को भोग लगाते आ रहे हैं। जिसे वे खुशी खुशी ग्रहण भी करते हैं, उनके पूर्वजों ने भी उन्हें यही बताया हैं कि यह एक तांत्रिक मंदिर था। जहां बलि चढ़ाने के बाद बलि के मांस के साथ-साथ भैरव बाबा को मदिरा भी चढ़ाई जाती थी। अब बली तो बंद हो गई है लेकिन मदिरा चढ़ाने का सिलसिला वैसे ही जारी है। इस मंदिर की महत्ता को प्रशासन भी मंजूरी देता है खास अवसरों पर प्रशासन की ओर से भी बाबा भैरवनाथ को मदिरा चढ़ाई जाती है।
दिनांक 6 सितंबर 2022 डोल ग्यारस के अवसर पर उज्जैन स्थित काल भैरव मंदिर से शाम 4:00 बजे भैरवनाथ की सवारी निकलने वाली है। यह इतिहास में पहली बार होने जा रहा है, जब भगवान महाकाल के सेनापति चांदी की पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलने जा रहे हैं। मंदिर प्रशासन ने दानदाता के सहयोग से पालकी का निर्माण कराया है। बताया जा रहा है कि काशी के श्रवणकरो ने पालकी को आकार दिया है, अब तक काल भैरव लकड़ी की पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण करते थे। इस बात की जानकारी खुद मंदिर प्रशासक कैलाश चंद्र तिवारी ने दी है उन्होंने बताया कि ग्वालियर के दानदाता संदीप मित्तल ने पालकी के निर्माण के लिए चांदी भेंट की है।
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