गर्भपात और उस से जुड़े तथ्य
गर्भपात और उस से जुड़े तथ्य
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सभी गर्भ सामान्यतया नौ महीने (40 सप्ताह) नहीं ठहरते और न ही शिशु का जन्म होता है। कुछ मामलों में गर्भ खुद गिर जाता है। इसे गर्भपात या स्वतः गर्भपात कहा जाता है। गर्भपात सामान्यतौर पर 26वें सप्ताह से पहले होता है। कुछ मामलों में शल्य क्रिया के जरिये गर्भ खत्म किया जाता है। इसे थोपा गया गर्भपात कहा जाता है। गर्भपात शिशु के जीवित रहने की संभावना शुरू होने से पहले होता है। अधिकांश गर्भपात, गर्भ के पहले 12 सप्ताह में होता है।

गर्भपात के कारण:

इसका सबसे सामान्य कारण है कि निषेचित अंडे के साथ कुछ गड़बड़ी होती है। इसके बावजूद यदि अंडा बढ़ता और विकसित होता है, तो उसके परिणामस्वरूप पैदा होनेवाला शिशु शारीरिक रूप से विकलांग होता है। इसलिए कभी-कभी गर्भपात ऐसे असामान्य जन्म को रोकने का प्रकृति का उपाय है। यदि महिला को मलेरिया या सिफलिस जैसी गंभीर बीमारी हो, वह गिर गयी हो या उसके जननांगों में समस्या हो, तो भी गर्भपात हो सकता है। कभी-कभी अंडा गर्भाशय के बदले कहीं अन्यत्र, सामान्यतया गर्भ-नलिकाओं में निषेचित होने से भी गर्भपात होता है। ऐसे गर्भ निश्चित रूप से गिर जाते हैं और तब स्थिति खतरनाक हो सकती है।

गर्भपात के लक्षण:

गर्भपात के दो मुख्य लक्षण होते हैं- योनि से रक्तस्राव और पेट के निचले हिस्से में दर्द। शुरुआत में रक्तस्राव बहुत कम होता है, लेकिन बाद में यह तेज हो जाता है और जल्दी ही खून के थक्के दिखाई देने लगते हैं। रक्तस्राव और दर्द, विशेषकर आरंभिक गर्भपात के दौरान आमतौर पर वैसे ही होते हैं, जैसा कि मासिक-धर्म के दौरान होता है।

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