जानिए आखिर क्यों गणगौर व्रत पर की जाती है माता पार्वती और महादेव की आराधना?
जानिए आखिर क्यों गणगौर व्रत पर की जाती है माता पार्वती और महादेव की आराधना?
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गणगौर व्रत हर साल चैत्र शुक्ल तृतीया को रखा जाता है। इस वर्ष यह व्रत 15 अप्रैल को रखा जाएगा। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, गणगौर व्रत माता पार्वती तथा महादेव की आराधना की जाती है। विशेष तौर पर विवाहित महिलाएं सौभाग्य प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं। आइए जानते हैं इस व्रत की विधि और महत्व के बारे में...

पूजा मुहूर्त:-
तृतीया तिथि आरम्भ- 14 अप्रैल को दोपहर 12:47 बजे 
तृतीया तिथि की समाप्ति- 15 अप्रैल दोपहर 03:27 बजे

पूजा सामग्री:-
आसन, कलश, काली मिट्टी, होलिका की राख, गोबर या फिर मिट्टी के उपले, शृंगा की चीज़ें, शुद्ध घी, दीपक, गमले, कुमकुम, अक्षत, ताजे फूल, आम की पत्ती, नारियल, सुपारी, पानी से भरा हुआ कलश, गणगौर के कपड़े, गेंहू, बांस की टोकरी, चुनरी, हलवा, सुहाग का सामान, कौड़ी, सिक्के, घेवर, चांदी की अंगुठी, पूड़ी आदि।

गणगौर व्रत की संपूर्ण विधि:-

* इस व्रत की तैयारी तकरीबन सात-आठ दिन पहले से होती है। इसके तहत जो विवाहित महिला इस व्रत को रखना चाहती है उसे कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र जगह पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए।
* इसी दिन से व्रती महिला को सिर्फ एक वक़्त का ही भोजन करना चाहिए।
* गौरीजी का विसर्जन न होने तक प्रतिदिन गौरीजी की विधि-विधान से पूजा करें
* मां गौरी को सोल शृंगार की वस्तुएं अर्पित करें।
* इसके साथ-साथ उन्हें चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि चढ़ाए।
* इसके बाद गौरीजी को भोग लगाया जाता है।
* भोग के पश्चात् गणगौर व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
* कथा सुनने के पश्चात् गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से अपनी मांग भरें।
* जबकि कुंवारी महिलाएं गौरीजी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें।
* चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) को गौरीजी को किसी नदी, तालाब अथवा सरोवर पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएं।
* चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराएं
* अब उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर डोल अथवा पालने में बिठाएं।
* इसी दिन शाम को गाजे-बाजे से नाचते-गाते हुए महिलाएं तथा पुरुष भी एक कार्यक्रम या एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी या तालाब में विसर्जित करें।
* तत्पश्चात, अपना उपवास खोलें। 

गणगौर व्रत कथा:-
पौराणिक कथा के मुताबिक, माना जाता है कि एकबार चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि के दिन मां पार्वती तथा शिवजी नारदमुनि के साथ भ्रमण पर निकले थे। इस के चलते वे एक गांव में पहुंचें। जब गांव की स्त्रियों को उनके आगमन की जानकारी मिली तो वे उनके स्वागत की तैयारी में जुट गईं। जहां समृद्ध परिवारों की स्त्रियों ने मां गौरी-शिव के स्वागत के लिए ना ना तरह के पकवान तथा फल की तैयारी करने लगीं। तो वहीं निर्धन स्त्रियों ने जो उनसे बन पड़ा उन्होंने वैसा ही स्वागत किया। किन्तु मां गौरी उनके भाव को देखकर बहुत खुश हो गईं। मां गौरी ने उन स्त्रियों की भक्ति को देखकर उन्हें सौभाग्य रस के तौर पर आशीर्वाद दिया। इसके पश्चात् जब समृद्ध परिवार की स्त्रियां तरह-तरह के मिष्ठान तथा पकवान लेकर आईं तो उन्हें आशीर्वाद के रूप में देने के लिए मां गौरी के पास कुछ न था। ऐसे में महादेव ने माता पार्वती से कहा कि अब आपके पास इन्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा क्योंकि आपने सारा आशीर्वाद निर्धन स्त्रियों को दे दिया। तब माता पार्वती ने अपने खून के छींटों से उन पर अपने आशीर्वाद दिया। 

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