चालीस दिन की चौरासी कोष व्रज यात्रा
चालीस दिन की चौरासी कोष व्रज यात्रा
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धार्मिक ग्रंथों और पुराण में बताया गया है कि, पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं। यही वजह है. कि ब्रज यात्रा करने वाले इन दिनों यहाँ खिंचे चले आते हैं। हज़ारों श्रद्धालु ब्रज के वनों में डेरा डाले रहते हैं। व्रज भूमि इतनी पवित्र मानी गई है की यहां आने वाले सभी भक्तों को पापों से मुक्ति साथ ही साथ इस भाव सागर से भी मुक्ति मिलती है.

इस ब्रज भूमि में आये सभी भक्त जनों की हर एक कामना की पूर्ति होती है. उसे सद गति मिलती है. ब्रजभूमि की यह पौराणिक यात्रा हज़ारों साल पुरानी है। चालीस दिन में पूरी होने वाली ब्रज चौरासी कोस यात्रा का उल्लेख वेद-पुराण व श्रुति ग्रंथ संहिता में भी है। कृष्ण की बाल क्रीड़ाओं से ही नहीं, सत युग में भक्त ध्रुव ने भी यहीं आकर नारद जी से गुरु मन्त्र ले अखंड तपस्या की व ब्रज परिक्रमा की थी। 

बताया जाता है की त्रेता युग में प्रभु राम के लघु भ्राता शत्रुघ्न ने मधु पुत्र लवणासुर को मार कर ब्रज परिक्रमा की थी। द्वापर युग में उद्धव जी ने गोपियों के साथ ब्रज परिक्रमा की। ब्रज में भगवान कृष्ण और राधा रानी और साथ ही साथ अनन्य गोपियों के साथ रास रचानें का चित्रण मिलता है. यह बहुत ही बड़ा धार्मिक स्थल है कृष्ण से जुडी अनेकों सुन्दर सुन्दर रास का चित्रण मिलता है . इस यात्रा में मथुरा की अंतरग्रही परिक्रमा भी शामिल है। 

मथुरा से चलकर यात्रा सबसे पहले भक्त ध्रुव की तपोस्थली राधा कुण्ड, गोवर्धन, मथुरा मधुवन पहुँचती है। यहाँ से तालवन, कुमुदवन शांतनु कुण्ड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन,काम्यवन, संच्दर सरोवर, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षीगोपालमंदिर, जलमहल, कुमुदवन, चरनपहाड़ीकुण्ड, काम्यवन, बरसाना, नंदगांव, जावट, कोकिलावन, कोसी, शेरगढ़, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भांडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुण्ड, कबीरकुण्ड भोयी कुण्ड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी,महावन, ब्रह्मांड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल,लोहवन, वृन्दावन के मार्ग में तमाम पौराणिक स्थल हैं। दर्शनीय स्थल, ब्रज चौरासी कोस यात्रा में दर्शनीय स्थलों की भरमार है। पुराणों के अनुसार उनकी उपस्थिति अब कहीं-कहीं रह गयी है।

प्राचीन उल्लेख के अनुसार बताया जा रहा है की इस यात्रा मार्ग में- 12 वन,24 उपवन,चार कुंज,चार निकुंज, चार वनखंडी, चार ओखर, चार पोखर,365 कुण्ड, चार सरोवर, दस कूप, चार बावरी, चार तट, चार वट वृक्ष, पांच पहाड़, चार झूला, 33 स्थल रासलीला के तो हैं हीं, इनके अलावा कृष्ण कालीन अन्य स्थल भी हैं। चौरासी कोस यात्रा मार्ग मथुरा में ही नहीं, अलीगढ़, भरतपुर, गुड़गांव, फ़रीदाबाद की सीमा तक में पड़ता है, लेकिन इसका अस्सी फ़ीसदी हिस्सा मथुरा में है।

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