भारत में देश का सबसे पहला त्यौहार हिन्दू नव संवत्सर को वर्षारम्भ के रूप में मनाया जाता है .इसे हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाए जाने की परम्परा है. इस बार गुड़ी पड़वा रविवार को है .इस दिन से नया हिन्दू वर्ष विक्रम संवत 2075 आरम्भ हो जाएगा.यहां गुड़ी से आशय 'गुड़ी' 'विजय पताका' से है .जबकि शब्द पड़वा या पाडोव संस्कृत शब्द पद्द्ववा/पाद्ड्वो से बना है जिसका अर्थ है चंद्रमा के उज्ज्वल चरण का पहला दिन.
उल्लेखनीय है कि ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र प्रतिपदा से ही ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी. इसलिए इसे सृष्टि दिवस भी कहा जाता है. शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस भी माना जाता है .इस तिथि से पौराणिक व ऐतिहासिक दोनों प्रकार की ही कई मान्यताएं जुड़ी होने से इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी.इसलिए प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुड़ी) फहराए थे, तब से यह परम्परा जारी है.
नूतन वर्ष के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले इस त्यौहार को भारतीय संस्कृति के अनुरूप विभिन्न प्रांतों में स्थानीय परम्पराओं का पालन कर मनाया जाता है. आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में ‘गुड़ी पड़वा’ को ‘उगाड़ी’ नाम से मनाया जाता है. कश्मीरी हिन्दू इस दिन को ‘नवरेह’ के रूप में मनाते हैं. वहीं मणिपुर में यह दिन ‘सजिबु नोंगमा पानबा’ या ‘मेइतेई चेइराओबा’ कहलाता है.इसके अलावा महाराष्ट्र में घर के आंगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा प्रचलित है. इसीलिए इस दिन को गुड़ी पड़वा नाम दिया गया.ऐसा माना जाता है कि यह वंदनवार घर में सुख, समृद्धि और खुशियां लाता है. इस दिन ख़ास कर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में भारतीय व्यंजनों में पुराण पोळी अथवा श्रीखंड का बनना वर्ष पर्यन्त सबसे मीठा बोलने और अच्छा व्यवहार करने की प्रेरणा देता है.
हिन्दू नव वर्ष को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं कहा जाता है कि महान गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वारा इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, मास और वर्ष की गणना कर पंचांग की रचना की गई थी. इसी कारण हिन्दू पंचांग का आरंभ भी गुड़ी पड़वा से ही होता है.जबकि दूसरी मान्यता यह भी है कि राजा विक्रमादित्य के काल में भारतीय वैज्ञानिकों ने सबसे पहले ही भारतीय कैलेंडर विकसित किया था. इसे नव संवत्सर भी कहते हैं इस विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसवी पूर्व में हुई. इसको शुरू करने वाले सम्राट विक्रमादित्य थे, इसीलिए उनके नाम पर ही इस संवत का नाम रखा गया है. इसके बाद 78 ईसवी में शक संवत का आरम्भ हुआ. इस हिन्दू नव वर्ष के पहले दिन प्रातः काल में उदित होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाकर ईश्वर से सुख , शांति,समृद्धि और आरोग्यता की कामना की जाती है. हिन्दू नव वर्ष की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं !
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हिन्दू नववर्ष गुड़ी पड़वा 2018 का महत्व