बदले आतंकियों के तौर-तरीके, दहशत का सिलसिला अभी भी बाकि है
बदले आतंकियों के तौर-तरीके, दहशत का सिलसिला अभी भी बाकि है
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अब जबकि इस्लामिक आतंकवाद दुनियाभर में अपने पैर जमा चुका है. विश्व समुदाय आतंक के नाम से परिचित होने लगा है। यूरोप में छिटपुट गोलीबारी होने पर भी लोग बदहवास हो जाते हैं। उनके मन में आतंक की दहशत गहराने लगती है। इसके उलट भारत के महानगरों और जम्मू-कश्मीर में आतंकी वारदात होने पर लोग पैनिक जरूर होते हैं मगर इसका रिएक्शन इस तरह से नहीं होता जैसा विदेशों में होता है. दरअसल भारत वर्षों से आतंक के दंश झेल रहा है। आतंकवाद कभी जम्मू-कश्मीर के रास्ते तो कभी खालिस्तान के नाम से पंजाब प्रांत में अपनी जड़े जमाता रहा है।

हालांकि देश सर्वाधिक प्रभावित किसी घटना से हुआ है तो वह है इस्लामिक आतंकवाद की घटनाऐं. भारत में आतंकवाद पाकिस्तान द्वारा प्रेरित है। पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर को हथियाने के लिए आतंक के हथियार को छद्म तरह से उपयोग करता है। पहले जहां वह सीधे तौर पर घुसपैठ को अंजाम देता था वहीं अब वह देश में धार्मिक उन्माद और लोगों की भावनाऐं भड़काने का प्रयास करता है।

मगर वह इसमें सफल नहीं हो पाया है। इतना ही नहीं संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का ही पक्ष कमजोर हुआ है। आतंकी गतिविधियों को अप्रत्यक्षतौर पर अंजाम देने और आतंकी संगठनों के लिए अपनी धरती पर ट्रेनिंग कैंप व अन्य सुविधाऐं उपलब्ध करवाने के कारण पाकिस्तान विश्व समुदाय के सामने एक यक्ष प्रश्न की तरह रहा है। हालांकि अमेरिका भी जानता है कि पाकिस्तान ही आतंकवाद को समर्थन देता रहा है लेकिन अमेरिका के निजी हित और वैश्विक परिस्थितियां अमेरिका को पाकिस्तान के खिलाफ सीधी कार्यवाही करने से रोकती है।

मगर आईएसआईएस के खिलाफ सीधी और जंगी कार्यवाही करने वाले अमेरिका को आतंक का पर्याय बन चुके पाकिस्तान के खिलाफ भी कार्यवाही करनी होगी। दरअसल जिस तरह से इस्लामिक आतंकवाद के पैर फ्रांस, रूस, अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया और अन्य देशों में पड़े हैं उससे तो यही लगता है कि आतंकवाद को समर्थन देने वाले इन राष्ट्रों के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

फ्रांस में बेस्टिल डे जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर 80 से अधिक नागरिकों की मौतों से माहौल मातमी हो गया। आखिर आतंकी क्या संदेश देना चाहते हैं। आतंकी चाहते हैं कि योरप और दुनियाभर के संपन्न देश अपनी संस्कृति, विचार, रहन सहन के साथ खुलकर और संपन्नता के साथ न रह पाऐं बल्कि वे आतंक के दकियानूसी विचारों के प्रभाव में रहें।

एक बात महत्वपूर्ण है कि आतंकवाद का किसी भी धर्म से संबंध नहीं है। हालांकि आतंकी कुरान की आयतें सुनाने की मांग करते हैं मगर इस तरह से रमजान माह में रक्तपात कर वे यह जरूर बता देते हैं कि उनका इस्लाम और उसके पैगंबर से कोई सरोकार नहीं है वे तो अपनी सत्ता को कायम करना चाहती है जो उन्हें प्रभुत्व दे लेकिन इस प्रभुत्ववादी सोच के कारण ही उनका पतन हो जाता है।

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