नई दिल्ली : सुप्रीमकोर्ट ने सरकार की दवा मूल्य निर्धारण नीति पर सवाल खड़े करते हुए इसने ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर 2013 को ‘अनुचित और तर्कहीन’ बताया.जस्टिस T.S. ठाकुर की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय पीठ ने कहा कि सरकार द्वारा तय कीमत बहुत ज्यादा होती है और सरकार को दाम तय करने के फॉर्मूले पर दोबारा विचार करने और 6 महीने में ‘उचित’ आदेश जारी करने के निर्देश दिए. गौरतलब है कि ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क नाम के एक NGO की याचिका पर कोर्ट ने यह निर्देश दिया है.
इस मामले में NGO ने याचिका दायर करते हुए कहा था कि दाम तय करने के लिए सरकार मार्केट बेस्ड प्राइसिंग की नीति अपनाती है. कोई और नियामक यह तरीका नहीं अपनाता है. किसी बीमारी की सबसे ज्यादा बिकने वाली दवा की जो कीमत होती है, और इस कारण सरकार द्वारा तय कीमत उससे अधिक हो जाती है. याचिका में NGO ने जरूरी दवाओं की लागत के आधार पर अधिकतम कीमत तय करने की मांग की है. इसमें कुछ और दवाओं को भी राष्ट्रीय सूची में शामिल करने की मांग की गई है.
कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘आप किसी दवा की अधिकतम कीमत उस वर्ग में सबसे ज्यादा बिकने वाली दवा की MRP से अधिक रखना बेतुका है. याचिका के मुताबिक नई नीति के कारण दवा निर्माताओं और डीलरों का प्रॉफिट मार्जिन 10 से 1300 गुना तक हो गया है. गौरतलब है कि जरूरी वर्ग में शामिल सभी दवाओं की अधिकतम कीमत सरकार तय करती है. यह मूल्यांकन 1 प्रतिशत से ज्यादा बाजार हिस्सेदारी वाली दवाओं की कीमतों के औसत के आधार पर किया जाता है.