दुर्जनों से नहीं दुर्गुणों से करो घृणा
दुर्जनों से नहीं दुर्गुणों से करो घृणा
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एक बार एक संत शिरोमणी एक धर्मग्रंथ का अध्ययन कर रहे थे। शब्दों को पढ़ते ही अचानक उनकी निगाह एक शब्द पर आकर रुक गई। वह शब्द यही था कि 'दुर्जनों से करो घृणा 'और वे संत उसी शब्द पर रुक गए उन्होंने उस शब्द को अपनी कलम से काट दिया और सोच में डूब गए फिर कुछ समय पश्चात आगे के शब्दों की ओर बढे .

कुछ दिनों के बाद दो संत उनके घर आए सामने रखे उस ग्रंथ पर उनकी निगाह पड़ी तो वे उस ग्रंथ को पढ़ने लगे। उन्होंने तब उस कटे हुए शब्द को पढ़ा और उस संत से उन्होंने पूछा कि इस शब्द को किसने और क्यों काट दिया है? तब संत शिरोमणी ने कहा इस पंक्ति को मैंने ही काटा है, दोनों संत उस संत शिरोमणी से नाराज होते हुए बोले, 'धर्मग्रंथ में जो लिखा है वो गलत नहीं हो सकता आपने ने बहुत गलत किया ग्रन्थ की सभी बातें सत्य होती है.आपने उसमें संशोधन करने की कोशिश क्यों की?'

संत शिरोमणी ने कहा, पहले मुझे लगा कि यह ठीक लिखा है फिर मुझे ऐसा लगा कि दुर्जनों से नहीं उनके दुर्गणों से घृणा करो। यह ठीक है इसलिए मैंने यह शब्द काट दिया। यह बात बिलकुल ही सत्य है क्योंकि सभी इंसान एक जैसे होते उनकी पहचान उनके सदगुणों और दुर्गुणों से होती है . अच्छे कर्मों से एक अच्छा पद प्रतिष्ठा मिलती है और व्यक्ति इस संसार में महानता को प्राप्त करता है .

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