दीपावली के पर्व के दौरान चतुर्दशी का पर्व साज-श्रृंगार के नाम रहता है। यूं तो इस दिन क्या महिला, क्या पुरूष और क्या बच्चे सभी के लिए अभ्यंग स्नान का प्रावधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि रूप चतुर्दशी को सूर्योदय के पहले उठकर स्नान किया जाए तो व्यक्ति को स्वर्ग का सुख मिलता है और उसे नर्क की यातनाऐं नहीं भोगना पड़ती हैं। दरअसल इस दिन नरकासुर का वध किया गया था और उसे भगवान ने वरदान दिया था कि इस दिन को नरक चतुर्दशी के तौर पर जाना जाएगा ऐसी मान्यता है।
इस दिन श्रद्धालुओं द्वारा बेसन, चंदन, तेल, तिल, दूध आदि के मिश्रण युक्त उबटन से अभ्यंग स्नान किया जाता है। कुछ समुदायों में मान्यता है कि स्नान के दौरान बेसन या आटे के दिये को पांव से बंद किया जाता है। यह बुराईयों और राक्षस का प्रतीक है जिसे प्रतीकात्मक तौर पर पांव लगाया जाता है।
अभ्यंग स्नान के पहले घर में लोगों की आरती उतारी जाती है और लोगों को उबटन आदि लगाया जाता है। मान्यताओं के साथ ही आधुनिक दौर में महिलाओं द्वारा साज-श्रृंगार किया जाता है। महिलाऐं आधुनिक और हर्बल सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग कर अपना रूप निखारती हैं तो दूसरी ओर कुछ महिलाओं द्वारा ब्यूटिपार्लर में भी समय दिया जाता है जिससे वे अपना रूप संवार पाऐं। रूप चतुर्दशी के इस दिन सभी सजे संवरे नज़र आते हैं।