ढलती शाम
ढलती शाम
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उतना ही मैं बुरा हूँ मैं
जितना तुम सोच सकते थे
या बेहतर उतना
जितना कि हो सकता था

वो सरकता रहा धीमे-धीमे
वक़्त था; करता भी क्या
और मैं उसके हर पल में
बदलता रहा आहिस्ता-आहिस्ता

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