देवउठनी एकादशी के साथ शुरू हो जाएगा शादियों का सीजन, लेकिन इन स्थितियों का जरूर रखे ध्यान
देवउठनी एकादशी के साथ शुरू हो जाएगा शादियों का सीजन, लेकिन इन स्थितियों का जरूर रखे ध्यान
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प्रत्येक वर्ष ​कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के तौर पर मनाया जाता है। परम्परा है कि इस दिन योग निद्रा में लीन जगत के पालनहार प्रभु श्री विष्णु चार महीने पश्चात् जागते हैं तथा सृष्टि के पालन का जिम्मा फिर से संभालते हैं। देव जागरण का दिन होने की वजह से इस दिन को देवोत्थान एकादशी तथा प्रबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन से शादी-विवाह, मुंडन, सगाई आदि मांगलिक कार्यों का भी आरम्भ हो जाता है। इस बार देवउठनी एकादशी रविवार 14 नवंबर को है। वही ज्योतिषाचार्य के अनुसार, शादी को हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों में से एक माना गया है। विवाह का मतलब है वि+वाह मतलब खास तौर पर (उत्तरदायित्व का) वहन करना। विवाह बंधन में बंधने के पश्चात् दूल्हा और दुल्हन दोनों का ही जीवन पूर्ण रूप से बदल जाता है। ऐसे में बहुत आवश्यक है कि विवाह पूर्ण रूप से शुभ मुहूर्त को देखकर किया जाए जिससे जिंदगी में कोई कष्टकारी स्थिति न उत्पन्न हो। यदि आप भी देवोत्थान एकादशी या इसके पश्चात् किसी तिथि में विवाह करने के बारे में सोच रहे हैं तो मुहूर्त​ निकलवाते वक़्त इन बातों का ध्यान अवश्य रखें।

1- ​शास्त्रों में कुल 27 नक्षत्रों के बारे में बताया गया है। शादी का मुहूर्त 10 नक्षत्रों में नहीं निकालना चाहिए। इन दस नक्षत्रों के नाम हैं- आर्दा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुणी, उतराफाल्गुणी, हस्त, चित्रा, स्वाति। इसके अतिरिक्त सूर्य यदि सिंह राशि में गुरु के नवांश में गोचर करे, तो भी शादी नहीं करना चाहिए।

2- शुक्र पूर्व दिशा में उदित होने के पश्चात् 3 दिन तक बाल्यकाल में रहता है। इस के चलते वो पूर्ण फल देने लायक नहीं होता, इसी प्रकार जब वो पश्चिम दिशा में होता है, तो 10 दिन तक बाल्यकाल की अवस्था में होता है। वहीं शुक्र जब पूर्व दिशा में अस्त होता है तो अस्त होने से पूर्व 15 दिन तक फल देने में समर्थ नहीं होता है व पश्चिम में अस्त होने से 5 दिन पूर्व तक वृद्धावस्था में होता है। ऐसे हालात में शादी का मुहूर्त निकलवाना उचित नहीं होता। वैवाहिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए शुक्र का शुभ स्थिति में होना तथा पूर्ण फल देना आवश्यक है। इस बात का ध्यान रखें।

3- गुरू किसी भी दिशा मे उदित अथवा अस्त हों, दोनों ही हालातों में 15-15 दिनों के लिए बाल्यकाल में वृ्द्धावस्था में होते हैं। इस के चलते विवाह कार्य संपन्न करने का कार्य नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार अमावस्या से 3 दिन पहले व 3 दिन पश्चात् तक चंद्र का बाल्य काल होता है। इस वक़्त विवाह कार्य नहीं करना चाहिए। ज्योतिषशास्त्र में ये परम्परा है कि शुक्र, गुरु व चन्द्र इन में से कोई भी ग्रह अगर बाल्यकाल में हो तो उसकी पूर्ण तौर पर शुभता प्राप्त नहीं होती। जबकि वैवाहिक जीवन के लिए इन तीनों ग्रहों का शुभ होना बेहद आवश्यक है।

4- अगर आपकी संतान घर की सबसे बड़ी संतान है, तथा उसका जीवनसाथी भी अपने घर का ज्येष्ठ है, ऐसे में शादी का मुहूर्त ज्येष्ठ माह में न निकलवाएं। ऐसा होने पर त्रिज्येष्ठा नामक योग बनता है, इसे शुभ नहीं माना जाता। किन्तु यदि दूल्हा या दुल्हन में से कोई एक ज्येष्ठ हो, तो शादी ज्येष्ठ मास में की जा सकती है।

5- एक लड़के से दो सगी बहनों की शादी नहीं करना चाहिए, न ही दो सगे भाइयों की शादी दो सगी बहनों से करना चाहिए। इसके अतिरिक्त दो सगे भाइयों या बहनों की शादी भी एक ही मुहूर्त समय में नहीं करना चाहिए। जुड़वां भाइयों की शादी जुड़वा बहनों से नहीं करना चाहिए। हालांकि सौतेले भाइयों की शादी एक ही लग्न समय पर किया जा सकता है।

6- बेटी की शादी करने के 6 सूर्य मासों की अवधि के भीतर सगे भाई की शादी की जा सकती है, किन्तु बेटे के पश्चात् बेटी की शादी 6 मास की अवधि के मध्य नहीं किया जाता। ऐसा करना अशुभ समझा जाता है। दो सगे भाइयों या बहनों का विवाह भी 6 मास से पहले नहीं करना चाहिए।

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