जानिए क्या है देवोत्थान एकादशी की पूजा विधि
जानिए क्या है देवोत्थान एकादशी की पूजा विधि
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प्रभु श्री विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसके पश्चात् वह कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इन चार माहों में देव शयन की वजह से समस्त मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। जब प्रभु श्री विष्णु जागते हैं, तभी कोई मांगलिक कार्य संपन्न हो पाता है। देव जागरण अथवा उत्थान होने की वजह से इसे देवोत्थान एकादशी कहते हैं। इस दिन उपवास रखने का खास अहमियत है। कहते हैं इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसको सबसे बड़ी एकादशी भी माना जाता है। इस साल देवोत्थान एकादशी का मौका 25 नवंबर को है।

देवोत्थान एकादशी पर किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
निर्जल या सिर्फ जलीय पदार्थों पर व्रत रखना चाहिए। यदि मरीज, वृद्ध, बालक या व्यस्त शख्स हैं तो सिर्फ एक वेला का उपवास रखना चाहिए तथा फलाहार करना चाहिए। यदि यह भी संभव न हो तो इस दिन चावल तथा नमक नहीं खाना चाहिए। प्रभु श्री विष्णु या अपने इष्ट-देव की भक्ति करें। इस दिन तामसिक आहार (प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा, बासी भोजन) बिलकुल न खाएं। इस दिन "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करना चाहिए।

क्या है देवोत्थान एकादशी की पूजा विधि?
गन्ने का मंडप बनाएं ,बीच में चौक बनाया जाता है। चौक के बीच में चाहें तो प्रभु श्री विष्णु का चित्र अथवा प्रतिमा रख सकते हैं। चौक के साथ-साथ प्रभु के चरण चिह्न बनाए जाते हैं, जिसको कि ढक दिया जाता है। प्रभु श्री विष्णु को गन्ना, सिंघाडा तथा फल-मिठाई समर्पित किए जाते हैं। घी का एक दीया जलाया जाता है जो कि रातभर जलता रहता है। भोर में भगवान के चरणों की विधिवत उपासना की जाती है। फिर चरणों को स्पर्श करके उनको जगाया जाता है। इस वक़्त शंख-घंटा-और कीर्तन की आवाज की जाती है। इसके पश्चात् व्रत-उपवास की कथा सुनी जाती है। तत्पश्चात, सभी मंगल कार्य विधिवत आरम्भ किए जा सकते हैं।

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