नई दिल्ली: दिल्ली दंगे के मामले में UAPA के तहत अरेस्ट किए गए जहवरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) के पूर्व छात्र उमर खालिद की अमरावती में दी गई स्पीच को दिल्ली उच्च न्यायालय ने भड़काऊ और आपत्तिजनक माना है। वर्ष 2020 के दिल्ली दंगों के मुख्य आरोपी खालिद की जमानत याचिका को जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल व न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की बेंच ने खारिज कर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि, 'क्या ये कहना कि जब आपके पूर्वज अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे, गलत नहीं है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला देकर ऐसे भड़काऊ बयान नहीं दिए जा सकते। लोकतंत्र में इसकी अनुमति नहीं है।' अदालत ने पूछा कि, 'क्या आपको नहीं लगता कि भाषण में इस्तेमाल किए गए ये भाव लोगों भड़काने वाले है? यह पहली दफा नहीं है जब आपने अपने भाषण में ऐसा कहा है। आपने यह कम से कम पाँच दफा कहा। यह लगभग ऐसा है जैसे कि भारत की आजादी की लड़ाई सिर्फ एक ही समुदाय ने लड़ी थी।' अदालत ने सवाल किया कि क्या गाँधी जी या शहीद भगत सिंह जी ने कभी इस भाषा का प्रयोग किया था? दिल्ली उच्च न्यायालय ने खालिद के भाषण का एक हिस्सा भी पढ़ा। इसके बाद उमर खालिद के वकील त्रिदीप पेस से अदालत ने कहा कि बयान को देखकर हैरान नहीं है कि क्यों पुलिस ने इसमें FIR दर्ज की है।
पेस की दलील पर कड़ा रुख अपनाते हुए कोर्ट ने सवाल किया कि क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अप्रिय भाषण देने तक है। जो IPC के 153A और 153B के तहत दंडनीय अपराध है। अदालत ने जब पूछा कि खालिद पर क्या इल्जाम हैं। इसके जवाब में त्रिदीप पेस ने कहा कि खालिद पर साजिश का आरोप लगाया गया है, मगर वह उस समय शहर में मौजूद नहीं था। हालाँकि, अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया कोर्ट कह सकती है कि खालिद द्वारा दिया गया भाषण स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने खालिद की जमानत याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए तीन दिन में जवाब दायर करने का निर्देश दिया है। याचिका पर अगली सुनवाई 27 अप्रैल को होगी।
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