प्रयासों से कम हुआ माओवाद का असर
प्रयासों से कम हुआ माओवाद का असर
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नई दिल्ली : उत्तर - पूर्व में इन दिनों माओवादियों का असर देखने को मिल रहा है। हाल ही में माओवादियों के साथ मुठभेड़ में सेना के करीब 20 से अधिक जवान शहीद हो गए। जिससे सेना को एक बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। मगर केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न राज्यों के बीच सीमा विवाद और अन्य मसलों पर ध्यान दिए जाने से संघर्ष की स्थिति कुछ कम हो सकती है। दूसरी ओर हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश के साथ जो सीमा विवाद में समझौता कर सौ से अधिक गांव उन्हें दिए हैं ऐसे में माना जा रहा है कि बांग्लादेश की ओर सामने आने वाली बांग्लादेशी शरणार्थियों की समस्याओं को कुछ कम किया जा सकता है।

 मिली जानकारी के अनुसार उत्तर पूर्व के राज्यों की स्थिति सुधारने को लेकर सरकार लगातार ध्यान दे रही है। इस वर्ष के प्रारंभ में ही एनएससीएन (के) प्रमुख एसएस खपलांग, उल्फा (आई) के प्रमुख चिकित्सक अभिजीत असोम, केएलओ प्रमुख जीबन सिंह कोच और एनडीएफबी प्रमुख बी. सौराईगरा द्वारा मैत्री किए जाने की घोषणा करवाई गई। इससे बोडो लैंड की मांग करने वाले और माओवाद का रास्ता सुझाने वालों के रूख में नरमी आई है। 

मामले में असम राईफल्स के 7 जवानों द्वारा नगालैंड में उग्रवादियों के हमले में मारे गए 6 अक्टूबर 2012, मणिपुर में उग्रवादियों ने घात लगाकर हमला कर दिया। मामले में विभिन्न जवानों द्वारा 2005 से 31 मई 2015 के बीच 451 जवान उग्रवादियों के हमलों में मारे जाने की जानकारी मिली।  मामले में कई ऐसे संगठन हैं जिन्हें उग्रवाद फैलाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है लेकिन इन संगठनों के नेताओं और लड़ाकों को परिवर्तन के माध्यम से समझाया जा रहा है। इन दलों में आदिवासियों को भी शामिल कर लिया गया है लेकिन इन आदिवासियों को भी समझाईश देकर मूल धारा से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। आॅल त्रिपुरा टाईगर फोर्स, नेशनल सोश्यलिस्ट काउंसिल आॅफ नगालैंड, आॅल त्रिपुरा टाईगर फोर्स, यूनाईटेड लिबरेशन फ्रंट आॅफ असम आदि संगठन सक्रिय हैं जो उत्त्तर पूर्व में माओवादी गतिविधियां संचालित कर रहे हैं।

 

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