Nov 10 2015 02:42 PM
उस दिन उसकी एक हल्की सी झलक मिली
वो आज भी वैसी ही दिखती है
सुनहरे से रंग की
थोड़ी देर के लिए मन पीछे चला गया,
और उसके साथ गुजरा प्रत्येक क्षण याद आया
वो कैसी कड़क हुआ करती थी
सीटी बजी और नरम हो जाया करती थी।
पर अब !
सब कुछ ख़त्म हो चुका है।
अब तो वो बड़े सख्त पहरे में रहती है।
बड़े बड़े घरो की शोभा है अब वो ।
कभी-कभी दिखती है,
दो आँसू शायद उसके भी गिरते होंगे अब ।
मैं भी धीरे धीरे, बिना सीटी के ही नरम हो जाता हूँ।
अरे....
अरे.... हाँ !
मैं यहाँ अपनी तुअर दाल की ही बात कर रहा हूँ।
200 रुपए किलो
और कुछ नहीं।
बिना दाल का भात
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