देशभर में मानसून अपने शबाब पर है। मानसून की सक्रियता के ही साथ कई स्थानों पर बाढ़, भूस्खलन और मकानों के ढहने जैसी घ्टनाऐं हो रही हैं। मगर इन सभी में एक बात साफ नज़र आ रही है कि राहत के इंतज़ाम होने के बाद भी वे नाकाफी हो जाते हैं। सबसे ज़्यादा खराब हालात किसी भी मकान के ढहने पर नज़र आते हैं। सागर में कच्चा मकान ढह गया वहीं एक अन्य स्थान पर एक दो मंजिला भवन जमींदोज़ हो गया। यह भवन पल भर में भरभराकर गिर गया। आखिर बारिश के दौरान होने वाले इस तरह के हादसों को लेकर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जाती है।
क्या कच्चे, जर्जर और गिराउ मकानों को लेकर कोई कदम नहीं उठाया जाता। मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में बारिश के ही दौरान श्री महाकालेश्वर की सवारी निकलती है। इस सवारी मार्ग में बड़े पैमाने पर जर्जर और गिराउ मकान हैं इन्हें चिन्हित भी किया जा चुका है लेकिन इसके बाद भी इन मकानों को गिराया नहीं जाता आखिर क्या कारण है जो इन मकानों को गिराया नहीं जाता। क्या किसी हादसे के होने की बाट जोही जाती है।
या फिर इन भवनों के मालिकों को उचित मुआवजा नहीं दिया जा सका है जिसके कारण भवन हटाने की कार्रवाई अधर में लटकी हुई है। इस तरह के तमाम सवाल जेहन में आते हैं मगर इनका न तो उत्तर मिलता है न ही समाधान। यदि हादसों के पहले और बारिश का मौसम प्रारंभ होने के पहले ही इस मामले में उचित कदम उठा लिए जाऐं तो इंसानी नुकसान और संपत्ती के नुकसान को रोका जा सकता है।
'लव गडकरी'