नई दिल्ली : राष्ट्रपति चुनाव के माध्यम से एक हो रहे विपक्षी दलों को बड़ा झटका देते हुए बिहार के सीएम और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने जब से राजग के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद के नाम का समर्थन किया है, तब से विपक्षी एकता बिखरती नजर आ रही है. हालांकि विपक्ष के 17 दलों की आज बैठक हो रही है, जिसमे क्या तय होगा यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन नीतीश के इस कदम से जो सवाल खड़े हुए हैं उनका कांग्रेस को जवाब नहीं मिल रहा है. इससे कांग्रेस की किरकिरी हो रही है.
गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन किया है. इससे कुछ ऐसे सवाल खड़े हो गए हैं जिनका जवाब विपक्ष नहीं दे पा रहा है.पता ही है कि कोविंद संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं. ऐसे में नीतीश विपक्ष के खिलाफ वोट करेंगे तो फिर बाद में विपक्ष के साथ आने पर विपक्ष की विश्वसनीयता कितनी बचेगी? दूसरा सवाल यह है कि जिस विचारधारा के खिलाफ विपक्ष मोर्चा खोल रहा है, उसके एक मजबूत चेहरे को नीतीश के समर्थन से क्या विपक्ष कमजोर नहीं होगा ? तीसरा सवाल यह कि विचारधारा की बात करने वाली कांग्रेस और लालू क्या बिहार में नीतीश के नेतृत्व में सरकार में बने रहेंगे ? तब विचारधारा के सवाल का क्या होगा . चौथा सवाल यह कि क्या विपक्ष के पास वर्तमान हालातों में नीतीश को किनारा करने की हिम्मत है? अंत में सबसे अहम सवाल यह कि अगर मोदी को रोकने के लिए भविष्य में किसी गैर कांग्रेसी को पीएम बनाने का पेच फंसा तो क्या राहुल नीतीश के नाम पर सहमत होंगे ? इसीसे नीतीश के इस कदम की अहमियत समझी जा सकती है.
आपको याद दिला दें कि राजनीतिक दांव चलने में माहिर नीतीश कुमार पहले भी एनडीए में रहते हुए यूपीए के उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी का समर्थन कर चुके हैं. साथ ही मोदी के एनडीए के पीएम उम्मीदवार बनने के बाद एनडीए छोड़ कर कांग्रेस-लालू के साथ हो गए थे और बिहार के मुख्यमंत्री बन गए .जबकि इस बार उन्होंने उल्टा दांव चला है . जो भी हो नीतीश के इस कदम से कांग्रेस की तो किरकिरी हो ही गई है.
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