नई दिल्ली: रविवार को दिल्ली में जेडीयू की कार्यकारिणी समिति की बैठक होने वाली है. इस बैठक के लिए पार्टी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अध्यक्ष चुना है. इससे पहले शनिवार को बिहार विधानसभा सभागार में तमिलनाडु संस्था पेरियार इंटनेशनल, यूएसए द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में नीतीश को इस साल का वीरमणि अवॉर्ड फॉर सोशल जस्टिस दिया गया।
इस मौके पर नीतीश कुमार ने दलित और ईसाई मुसलमानों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का मुद्दा उठाया, साथ ही आरक्षण का दायरा बढाने और निजी क्षेत्र में आरक्षण की वकालत की. इस मौके पर भविष्य की रूपरेखा भी दिखी जहां सीपीआई के डी राजा, पीस पार्टी के डॉ अयूब और दविड कड़गम संस्था के के. वीरामणि मौजूद थे।
नीतीश ने कहा कि मैंने गांधीजी के पदचिन्हो पर चलते हुए 10 साल पहले सदन में ये मुद्दा उठाया था। धर्म बदल जाने से जाति नहीं बदलती. दलित मुसलमानों और इसाइयों को एससी-एसटी का दर्जा दिया जाना चाहिए. समय के साथ बौद्ध और सिख धर्मो के लोगों को एससी-एसटी का दर्जा मिल गया, फिर इसाईयों व मुसलमानों को क्यों इससे महरुम रखा गया।
मोदी पर हमला बोलते हुए नीतीश ने कहा कि इस साल के बिहार चुनाव में पीएम ने इसे मेरे खिलाफ राजनीतिक तौर पर इस्तेमाल किया था, इससे मेरी ही पार्टी के लोग घबरा गए थे. अगर अनुसूचित जाति की संख्या बढ़ेगी, तो उनका 27 फीसदी का कोटा भी बढ़ाया जाना चाहिए।
मंडल कमीशन के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का फैसला है जिसे हम मानते हैं, लेकिन आरक्षण का दायरा बढ़ना चाहिए. इसपर चर्चा करने का वक्त आ गया. मैं मानता हूं कि मुस्लिम हो, ईसाई हो उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए क्योंकि दलितों की तरह वो भी उसी तरह के उपेक्षा के शिकार हैं, पिछड़ेपन के शिकार हैं।
उन्हें एससी-एसटी का दर्जा मिलना चाहिए और संविधान का संशोधन कर 50 फीसदी का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए।