आजाद थे वे आजाद ही रहे !
आजाद थे वे आजाद ही रहे !
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नई दिल्ली : अलीराजपुर जिले के भाबरा में 23 जुलाई 1906 के ही दिन एक बालक का जन्म हुआ। किसी को भी नहीं पता था कि यह बालक आगे चलकर भारतीय स्वाधीनता की नींव बनने वाला नायक बनेगा। जी हां, भाबरा में सीताराम तिवारी के घर पर जो बालक जन्मा उसका नाम रखा गया चंद्रशेखर तिवारी। आगे यही बालक वीर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद के नाम से जाना गया। दरअसल चंद्रशेखर आजाद के परिजन उत्तरप्रदेश से आकर मध्यप्रदेश के आलीराजपुर में आकर बस गए थे। उनकी मां का नाम जगरानी देवी था।

वे अपने पुत्र चंद्रशेखर आजाद को संस्कृत का विद्वान बनाना चाहती थीं। आजाद यहां पर आदिवासी बच्चों के साथ खेला करते थे इतना ही नहीं वे आदिवासियों के साथ तीरकमान का अभ्यास भी करते थे। उनके निशाने से तो अंग्रेजों की हौंसले भी हिल जाते थे। बाद में उन्हें महज 14 वर्ष की आयु में बनारस के संस्कृत विद्यापीठ में संस्कृत के अध्ययन के लिए भेजा गया। मगर वे बाद में क्रांतिकारियों के प्रभाव में आए और फिर 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जनरल डायर ने निहत्थे 400 से अधिक लोगों को गोलियों से भून दिया।

1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में चंद्रशेखर आजाद द्वारा अंग्रेजों के विरूद्ध मोर्चा खोला गया। वर्ष 1921 का दौर वह दौर था जब गांधी जी के असहयोग आंदोलन में चंद्रशेखर आजाद ने भाग लिया। आजाद मातृभूमि के भक्त निकले और वे गांधी जी से प्रभावित थे लेकिन चैरी चोरा की घटना को लेकर गांधी जी के असहयोग आंदोलन को वापस ले लिए जाने के कारण कई युवाओं को निराशा हुई।

ऐसे में महान क्रांतिकारी चंद्रशेशर आजाद भी निराश हुए। उन्होंने अपना अलग क्रांतिकारी दल बनाने की तैयारी की। जब 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जनरल डायर ने निहत्थे लोगों को जलियावाला बाग में गोलियों से भून दिया। इस घटना ने आजाद के मन को बदल दिया और फिर उन्होंने क्रांति का एक अलग ही रास्ता अपनाया। उन्होंने अपनी क्रांतिकारी साथियों के साथ सोंडर्स की हत्या करने की तैयारी की।

एक बार आजाद ने असहयोग आंदोलन के आंदोलनकारियों को मारने वाले पुलिसकर्मी को पत्थर दे मारा तो उन्हें पकड़कर न्यायाधीश के सामने पेश किया गया। तब उन्हें 15 कोड़े मारे गए मगर हर कोड़े पर उनहोंने महात्मा गांधी और भारत माता की जय के नारे ही लगाए। आजाद की भेंट चैरीचोरा के बाद भगत सिंह से हुई। 9 अगस्त 1925 को आजाद ने राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान के साथ काकोरी कांड को अंजाम दिया।

दरअसल काकोरी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में जा रहे अंग्रेजों के खजाने को लूटा गया। राम प्रसाद बिस्लिम ने ट्रेन की चेन खींची और फिर खजाना लूटा गया। इस कांड को अंजामद देने वाले राम प्रसाद बिस्लिम, अशफाक उल्ला खान, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी दे दी गई। मगर आजाद भाग निकले। 27 फरवरी को अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर आजाद को अल्फ्रेड पार्क में पुलिस ने घेर लिया। फायरिंग में आजाद ने कई अंग्रेज पुलिसवालों को मार गिराया मगर जब उनके पास एक गोली ही बच गई थी तो उन्होंने स्वयं पर वह गोली चला दी। वे जीवित अंग्रेजों के हाथ नहीं आए।

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