या रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो क्या होता -चराग़ हसन हसरत
या रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो क्या होता -चराग़ हसन हसरत
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या रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो क्या होता...

या रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो क्या होता
जो हाथ जिगर पर है वो दस्त-ए-दुआ होता

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