आज़ादी के 68 बसंत और बदलते भारत की तस्वीर
आज़ादी के 68 बसंत और बदलते भारत की तस्वीर
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कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों से रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा, सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा। जी हां, इस तरह की पंक्तियां भारत के संदर्भ में सही साबित होती हैं। चाहे सिकंदर हो, बाबर हो, औरंगजेब हो, तुर्क हो, अंग्रेज हो या फिर आतंकी। हर किसी को भारत पर किए जाने वाले आक्रमण का खामियाजा भुगतना पड़ा है। ये सारी शक्तियां मिट गईं लेकिन हमारा हिंदुस्तान आज भी कायम है, केवल कायम ही नहीं है हर बार यह अपने साथ कुछ नई मान्यताऐं और नई संस्कृतियां अपने में समाहित करता चला जाता है और हर बार इसकी संस्कृति और भी समृद्ध होती चली जाती है। संभवतः इसीलिए इसे महामानवों का समुद्र कहा गया है। ऐसा समुद्र जिसमें कई तरह की संस्कृतियों को मानने वाले लोग एक साथ रहते हैं। हालांकि यह बात और है कि समय - समय पर संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद, धर्म से हमारी जड़ों को हिलाने का प्रयास किया जाता है लेकिन सियासतदार इस कार्य में सफल नहीं हो पाते हैं। 

हालांकि ये देश के लिए एक बड़ी समस्या है। आजादी के 68 वर्ष पूरे हो जाने के बाद देश काफी बदला है। सपेरों और मटमैले कपड़े पहनने वाले किसानों के इस देश में शंघाई जैसे शहर बनाने के सपने बुने जाते हैं। यही नहीं अब यहां पर समान अवसर, समान भागीदारी की बात होने लगी है। चाक से अपना नाम लिखने वालों के इस देश में अब डिजीटल इंडिया की बात की जाने लगी है। हां मगर धार्मिक भावनाऐं यदि भड़क जाए तो सियासतदार म्यान में से तलवारें खींच लेते हैं। 

यह बात जरूर देश की तरक्की की राह में एक रोड़ा बनकर सामने आती है लेकिन अब यहां का बाशिंदा समझने लगा है कि यह तो केवल एक सियासी शगूफा है। वे जानते हैं कि धर्म परिवर्तन और घर वापसी जैसे मसलों को हवा देने पर उठने वाली चिंगारी उनके घर और सपनों को स्वाहा कर सकती है। ऐसे में ये हवाओं के रूख को जानकर उनसे किनारा करने लगे हैं। हिंदू हो या मुसलमान अब उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किसकी इबादत में शीश नवाते हैं उन्हें फर्क पड़ता है तो इस बात से कि उनकी तरक्की के रास्ते क्या हैं उनके जीवन के मायने क्या हैं। 68 वर्षों में आने वाला इस तरह का परिवर्तन एक बड़ा परिवर्तन है।

हालांकि देश की राह में चुनौतियां भी कम नहीं हैं। तेजी से देश में युवा जनसंख्या बढ़ी है। यही नहीं अब इन युवाओं में शिक्षा का प्रसार बढ़ा है। इनके सामने रोजगार की सबसे बड़ी परेशानी है। मगर स्वरोजगार के तौर पर इनके लिए बेहतर अवसर उपलब्ध करवाने के प्रयास किए जा रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या के साथ सीमित संसाधनों के बीच महंगाई बढ़ने की संभावना भी नई चुनौती के तौर पर आकार ले रही है। देश लगातार तकनीकी दक्षता की ओर आगे बढ़ रहा है ऐसे में देश में स्किल डेवलपमेंट की जरूरत सबसे ज़्यादा मानी जा रही है। हालांकि इस देश में चुनौतियां भी कम नहीं हैं लेकिन 68 बसंत पूरे कर लेने के बाद तरक्की की नई ईबारत लिखने में भारत किसी से पीछे नहीं रहा है। 

जिस तरह से देश की सीमाओं पर भारतीय सेना मुस्तैदी से डटी है उससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अब कोई विदेशी ताकत युद्ध में सेना के सामने टिक नहीं सकती है। इसका सबसे बड़ा कारण है सेन्य क्षेत्र में उत्तरोत्तर तकनीकी विकास और आत्मनिर्भरता। आत्मनिर्भरता से हम अपना रक्षा बजट प्रबंधित कर सकते हैं जिससे राजकोष पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा।

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