CBI पिंजरे का तोता या आज़ाद एजेंसी ? सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने दाखिल किया अपना बयान
CBI पिंजरे का तोता या आज़ाद एजेंसी ? सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने दाखिल किया अपना बयान
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नई दिल्ली: भ्रष्टाचार और अपराध पर जीरो टोलरेंस की नीति अख्त्यार करने वाली केंद्र सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों का गलत इस्तेमाल करने का इल्जाम अक्सर लगता रहता है, जब भी किसी विपक्षी नेता के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में जांच शुरू होती है, तब ये आरोप पूरा विपक्ष एक सुर में लगाता है। हालाँकि, केंद्र सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट में ये स्पष्ट कर दिया है है कि CBI केंद्र के नियंत्रण में कार्य नहीं करतीं। केंद्र सरकार ने आज गुरुवार (2 मई 2024) को सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि CBI उसके ‘नियंत्रण’ में नहीं है।

दरअसल, पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने एक मुकदमे में आपत्ति जाहिर की थी और कहा था कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) कई मामलों में राज्य सरकार उसकी इजाजत लिए बगैर ही अपनी छानबीन को आगे बढ़ा रही है। इस मामले में ममता सरकार ने शीर्ष अदालत में एक याचिका दाखिल की थी। इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने यह बात कही है। ममता सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक मूल मुकदमा दाखिल किया था। अनुच्छेद 131 केंद्र और एक या ज्यादा राज्यों के बीच विवाद में सुप्रीम कोर्ट के मूल क्षेत्राधिकार से जुड़ा हुआ है। इसमें इल्जाम लगाया गया है कि राज्य द्वारा केंद्रीय एजेंसी को दी गई सहमति वापस लेने के बाद भी CBI राज्य में FIR दर्ज कर रही है और छानबीन कर रही है।

जिसके बाद केंद्र सरकार की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय में पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच को बताया कि संविधान का अनुच्छेद 131 शीर्ष अदालत को प्रदत्त ‘सबसे पवित्र’ क्षेत्राधिकारों में शामिल है और इस प्रावधान को दुरुपयोग करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य के केस में संदर्भित मामले भारत संघ द्वारा दाखिल नहीं किए गए हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि, “भारत संघ ने कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया है, बल्कि CBI ने केस दर्ज किया है और CBI भारत सरकार के नियंत्रण में काम नहीं करती है।” 

ममता सरकार ने CBI से वापस ले ली थी जांच की अनुमति :-

बता दें कि 16 नवंबर 2018 को ममता सरकार ने बंगाल में जाँच करने या छापेमारी करने के लिए CBI को दी गई ‘सामान्य सहमति’ वापस ले ली थी। दरअसल, CBI राज्य में शिक्षक भर्ती घोटाला, नगर निगम भर्ती घोटाला, गौवंश तस्करी, राशन घोटाला समेत भ्रष्टाचार एवं अन्य अपराध के मामलों की छानबीन कर रही है। ऐसे में विपक्षी पार्टियां केंद्र पर CBI के गलत इस्तेमाल का इल्जाम लगाते रहे हैं। उनका कहना है कि CBI और ED के माध्यम से केंद्र सरकार विपक्षी पार्टियों को डरा-धमका रही है। हालाँकि, केंद्र सरकार ने कई बार स्पष्ट किया है कि केंद्रीय एजेंसी केवल अपना कार्य कर रही है।

इन आरोपों के आधार पर विपक्षी पार्टियों की सरकार वाली राज्य सरकारों ने अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में मामलों की छानबीन के लिए CBI को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली थी। ऐसे 10 राज्य, जिनमे पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, तेलंगाना, पंजाब, झारखंड, केरल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम, और मेघालय का नाम शामिल है। इसके बाद दिसंबर 2023 को केंद्र सरकार की तरफ से कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा को बताया था इन 10 राज्यों ने CBI को जांच के लिए दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली है। दरअसल, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DPSE) अधिनियम 1946 की धारा 6 के मुताबिक, CBI को अपने अधिकार क्षेत्र में जाँच करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों से सहमति की जरूरत होती है। लेकिन विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्यों ने CBI को जाँच की अनुमति देने से इंकार कर दिया था। 

सुप्रीम कोर्ट ने CBI को पिंजरे का तोता कहा था :-

बता दें कि इसी CBI को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मनमोहन सरकार के दौरान वर्ष 2013 में कड़ी टिप्पणी की थी और उसे पिंजरे का तोता करार दिया था। दरअसल, UPA सरकार में हुए कोयला घोटाले पर CBI की स्‍टेटस रिपोर्ट में तत्कालीन कानून मंत्री अश्विनी कुमार और प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के हस्‍तक्षेप को लेकर सर्वोच्च न्यायालय भड़क गया था। शीर्ष अदालत ने था कि CBI के कई मास्‍टर हैं और जाँच एजेंसी एक तोते की तरह है। अदालत ने कहा था कि, “CBI वो तोता है जो पिंजरे में बंद है। इस तोते को आजाद करना आवश्यक है। CBI एक स्‍वायत्त संस्‍था है और उसे अपनी स्‍वायत्तता बरकरार रखनी चाहिए। CBI को किसी तोते की तरह अपने मास्‍टर की बातें नहीं दोहरानी चाहिए।”  

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