ईयू ने पाया या ब्रिटेन ने खोया ?
ईयू ने पाया या ब्रिटेन ने खोया ?
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ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से बाहर होने के बाद ये चर्चा स्वभाविक हो जाती है कि आखिर इससे किसे क्या मिला. क्यों ऐसी नौबत आई और अब आगे क्या? शुक्रवार की सुबह ने ये साफ कर दिया कि ब्रिटेन की जनता यूरोपीय संघ में नहीं रहना चाहती है. हांलाकि अभी इस पूरी प्रक्रिया में दो साल का समय लगेगा. यूरोपीय संघ 28 देशों से बनी एक यूनिट है, जिसे द्वितीय विश्वियुद्ध के बाद लगने वाला यह सबसे बड़ा झटका है. ब्रिटेन का यह फैसला ब्रिटेन को लंबे समय के लिए बदलने वाला है।

दरअसल मंदी के दौर में जिसे नौकरियां नहीं मिली या जिसने अपनी नौकरी गंवा दी, वो इस नवउदारवाद के दौर में खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है. ऐसे उदाहरण तो ब्राजील और फ्रांस जैसे देशों में भी है. फ्रांस के मजदूर हड़ताल पर है, जब कि ब्राजील भयानक मंदी के दौर में है. उधर हिलेरी क्लिंटन का मानना है कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई है. यही बात भारत में पॉलिसी पैरालिसिस के नाम से प्रचारित हो रही है. लेकिन वास्तविकता यह है कि हम इस संकट को फैलाने वाले सही आरोपी को नहीं ढूंढ पा रहे है।

कभी नौकरशाही तो कभी कमजोर नेताओं का रोना रोते है, लेकिन क्या तमाम देशों में कमजोर नेता है. सारे नेता दुनिया को टहलाने के लिए 2008 की मंदी का सहारा ले रहे है. 8 साल में अरबों-खरबों हवा हो गए, लेकिन मंदी नहीं गई. अब बात ब्रिटेन के अलग होने पर भारत पर पड़ने वाले प्रभावों की. दुनिया भर के शेयर पहले ही निचले स्तर पर छलांग लगाकर पहुंच चुके है. विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी आशंका पहले से थी, जो कि कुछ घंटो में कवर हो सकती है, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था में इस फैसले का काफी असर हो सकता है।

भारत ब्रिटेन का तीसरा सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेशक है, लेकिन भारत यूके से अधिक ईयू में निवेश करता है. बीते वर्ष भारत ने ब्रिटेन में 18543 करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट किया. इसलिए अब इंडियन कंपनियों के निवेश पर असर पड़ेगा. साथ ही यूके में प्रोफेशनल्स की भी कमी हो सकती है. अलग होने से बिना किसी रोकटोक के होने वाले व्यापार पर पूरे यूरोप में प्रतिबंध लगाया जा सकता है. बिजनेस मुश्किल होने पर टाटा की कंपनी जगुआर लैंड रोवर का वार्षिक लाभांश एक दशक में 10000 करोड़ तक गिर सकता है।

ब्रिटेन में कुल 800 भारतीय कंपनियां है, जो ओपन यूरोपियन मार्केट में बिजनेस करती है. इससे ब्रिटेन के 1.1 लाख लोगों को रोजगार मिलता है. इकोनॉमिस्ट डीएच पई पनंदिकर के अनुसार, टाटा मोटर्स, एयरटेल और भारत की फार्मा कंपनियां यूके में बेस बनाकर ईयू में आसानी से बिजनेस कर रही थीं. हांलाकि भारत पर पड़ने वाले असर पर अलग-अलग अर्थशास्त्रियों की अलग-अलग राय है।

अब इन्हें यूरोपियन यूनियन के बाकी देशों में बिजनेस के लिए एक्स्ट्रा टैक्स और ड्यूटीज देनी होंगी. ब्रिटेन का मानना है कि ईयू से अलग होकर ही ब्रिटेन अपनी असली पहचान पा सकता है. इससे इमिग्रेशन पर भी लगाम लगाई जी सकती है. दसरी ओर ईयू की ट्रेडिंग यूके के लिए आवश्यक है. यूके के लिए ट्रेडिंग कॉस्ट बढ़ जाएगी। खैर ब्रिटेन के भाग्य का फैसला हो चुका है!

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