दिमाग और दिल की लड़ाई में आप किसका साथ देते है?
दिमाग और दिल की लड़ाई में आप किसका साथ देते है?
Share:

अगर बात दिमाग और दिल की सुनने की हो तो हम अक्‍सर असमंजस में फंस जाते हैं, कि क्‍या सही है और क्‍या गलत. दिल की सुनें या दिमाग की? जिंदगी में रोजाना ही कुछ मामले ऐसे आते हैं, जब हमें पता नहीं चलता कि उन पर क्या फैसला लिया जाए. हमारा कौन सा निर्णय सही होगा? दिल और दिमाग  में अगर आंकलन किया जाए तो दिमाग जिसे सही मानता है दिल उसे खारिज कर देता है और इन सबमें हम कोई ऐसा फैसला कर लेते हैं जिसके बाद में हमें पछताना पड़ता है. 

सोचते हैं कि काश उस समय दिमाग की मान ली होती या काश दिल की सुन लेते. वैज्ञानिकों की मानें तो इन सब जद्दोजहद के लिए असल में हम नहीं बल्कि हमारे पास मौजूद ढेर सारे विकल्प पूरी तरह से जिम्मेद्दार हैं, जो दिमाग के अंदर परस्पर विरोधाभास पैदा करते हैं.

जब हमारे पास सिर्फ दो विकल्प हों तो हम ज्यादा अच्छा निर्णय लेते हैं बजाए ढेरों विकल्प के. इसलिए आगे से कभी भी यह मत सोचिए की आपको कई चीजों में से किसी एक को चुनने का मौका मिले. क्योंकि ऐसे में आप अक्सर गलत ही फैसला करेंगे. व्यवहार पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि हम दिल में जानते हैं कि हम तर्कहीन फैसला ले रहे हैं, फिर भी हम उसे चुनते हैं. 

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -