मणिपुर हिंसा पर कांग्रेस को 'एक्सपोज़' करने की तैयारी में भाजपा, पलटवार के लिए बनाया ये प्लान
मणिपुर हिंसा पर कांग्रेस को 'एक्सपोज़' करने की तैयारी में भाजपा, पलटवार के लिए बनाया ये प्लान
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इम्फाल: मणिपुर में हिंसा पर राजनीतिक हंगामा बढ़ता ही जा रहा है। विशेष रूप से I.N.D.।.A गठबंधन के नेताओं की मांग है कि संसद में इस मुद्दे पर कोई भी चर्चा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के साथ शुरू हो।  वहीं, अब भाजपा ने इसका करारा जवाब देने कि तैयारी कर ली है। भाजपा ने उस कुप्रबंधन, दुर्व्यवहार और हिंसा को देश के सामने रखने की योजना बनाई है, जब कांग्रेस, केंद्र और मणिपुर की सत्ता में हुआ करती थी। तब मणिपुर का क्या हाल था ? भाजपा यह बताकर आज के माहौल से उसकी तुलना करने की प्लानिंग में है। जिससे लोग वास्तविक स्थिति का आंकलन कर सकें।  

एक रिपोर्ट के अनुसार, सत्ता पक्ष के वक्ताओं ने कांग्रेस को "नागा-कुकी संघर्षों की याद दिलाने की योजना बनाई है, जिसमें 1993-1998 के दौरान 750 लोगों की जान चली गई थी और 350 गांव बर्बाद हो गए थे।'' सूत्रों का कहना है कि 1998 तक "छिटपुट हत्याओं" के बावजूद हिंसा का "सक्रिय चरण" लगभग "आठ महीने" तक जारी रहा था। सरकार जून 1997 के बीच "कुकी और पाइट्स के बीच अंतर-आदिवासी संघर्ष" को भी सामने लाने की योजना बना रही है। साथ ही सितंबर 1998" की हिंसा भी, जिसके परिणामस्वरूप 352 मौतें हुईं थी और 50 से अधिक गांव नष्ट हो गए थे, इसके अलावा 13,000 लोग विस्थापित हुए।" कुछ अन्य उदाहरण जिन्हें सरकार सामने लाने की योजना बना रही है, उनमें "मई 1993 का मैतेई-पंगल संघर्ष शामिल है जिसमें 100 लोगों की हत्या हुईं, 1995 में मोरेह में कुकी-तमिल संघर्ष जिसमें नौ लोगों की जान चली गई और 13,000 तमिल आबादी में से 9,000 को अपना सामान पैक कर पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा" और हमेशा के लिए उन्होंने शहर छोड़ दिया।

इसके साथ ही, भाजपा फर्जी मुठभेड़ों के 1,728 मामलों" और "बार-बार होने वाली नाकाबंदी" की ओर इशारा करते हुए राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार के रिकॉर्ड पर भी हमला कर सकती है, जो 2002 से 2017 तक सत्ता में रहे थे। खासकर  2010 में और 2017 में सीएम के शासन के अंतिम दिनों में ये मामले चरम पर थे। सूत्रों ने यह भी बताया है कि, भाजपा यह भी उजागर करेगी कि, 'उन वर्षों के दौरान 30 दिनों से लेकर 139 दिनों तक चले विरोध प्रदर्शनों ने जनजीवन को ठप कर दिया और आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ा दीं थीं, लेकिन फिर भी तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह या यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।'

साथ ही भाजपा यह तर्क दे सकती है कि उसने पूर्वोत्तर राज्य में हिंसा पर त्वरित प्रतिक्रिया करते हुए सेनाएं भेजीं और यह सुनिश्चित किया कि आवश्यक वस्तुएं रेलवे के माध्यम से मणिपुर पहुंचे। ताकि लोगों को सुरक्षा भी प्रदान की जा सके और आवश्यक चीज़ों के दाम न बढे। देखा जाए, तो भाजपा संसद में यह बताना चाहती है कि, हिंसा के इतिहास वाले मणिपुर में कांग्रेस के शासनकाल के दौरना हालात कितने भयानक थे और किसी की प्रतिक्रिया नहीं आती थी, वहीं, उसके (भाजपा के) शासन के दौरान हिंसा पर त्वरित कार्रवाई हुई है और उसको रोकने के सतत प्रयास किए जा रहे हैं। 

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