भारतीय शास्त्रीय संगीत के राजदूत सितारवादक पंडित रविशंकर
भारतीय शास्त्रीय संगीत के राजदूत सितारवादक पंडित रविशंकर
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हते हैं कि जब संगीत की मधुर स्वर लहरियां जब कानों में पड़ती है तो ऐसा महसूस होता है कि मानो कानों में मिश्री घुल गई हो .संगीत को स्वास्थ्य की संजीवनी भी कहा गया है. इसीलिए अब संगीत से मरीजों का इलाज भी किया जाने लगा है.संगीत में गायन के लिए वादन का अपना महत्त्व है .स्वर और वाद्य के संगम से ही संगीत परिपूर्ण होता है. जैसे कि पता है कि भारतीय संगीत परम्परा में अलग -अलग तरह के राग अलग समय और मौसम के अनुकूल बजाए जाते हैं .इनमे किसी भी मनोभाव को अभिव्यक्त करने की शक्ति होती है .इन रागों का प्रभाव मनोरम है. वादन के तो बहुतेरे रूप हैं. जिनमे से सितार प्रमुख है.

सितार का नाम आते ही इसके पर्याय बने पंडित रविशंकर का स्मरण बरबस हो आता है ,जो संगीत मर्मज्ञ होने के साथ ही सुरों के ऐसे साधक थे, जिन्होंने सितार को ही अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था .पंडित रविशंकर को इनके वाद्य संगीत की शास्त्रीय एवं शालीन संगीत शैली के कारण पहचाना जाता है .सितार के तारों पर जब इनकी उँगलियाँ फिरती थी तो उनसे निकलने वाली स्वर लहरियाँ भारतीय शास्त्रीय रागों का तान छेड़ देती थी .अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सितार को ख्याति दिलाने में पंडित रविशंकर का ही हाथ है .अपने वादन से पूरे विश्व को मंत्रमुग्ध करने वाले ऐसे महान स्वर साधक संगीतज्ञ पंडित रविशंकर की 97 वीं जयंती पर उनका स्मरण कर उनके भारतीय संगीत को दिए योगदान पर दृष्टिपात करते हैं.

जीवन परिचय : पंडित रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल 1920 को बनारस में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ .यह एक अजीब संयोग है कि रविशंकर जी के जीवन में 7 अंक का विशेष महत्व रहा .जैसे सुर भी 7 होते हैं , वैसे ही 7 भाइयों में ये सबसे छोटे थे .आपकी बचपन से संगीत में रूचि थी .संगीत के माहौल में ही बड़े हुए .शु रुआत नृत्य से हुई जिसमें भाई उदयशंकर ने मदद की भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उस्ताद अलाउद्दीन खां से प्राप्त की थी.अपने बड़े भाई उदयशंकर के साथ कई महत्पूर्ण उत्सवों में शामिल हुए . आपने 1938 से 1944 तक सितार का अध्ययन किया फिर स्वतन्त्र रूप से काम करने लगे . 1949 से 1956 तक ऑल इंडिया रेडियो में संगीत निर्देशक रहे.1960 के बाद यूरोप के दौरे शुरू हो गए.

विवादास्पद वैवाहिक जीवन : पंडित रविशंकर का दाम्पत्य जीवन हमेशा विवादों में रहा.एक से अधिक स्त्रियों से प्रेम संबंध और विवाह ने चर्चित किया .1941 में गुरु अलाउद्दीन की पुत्री से विवाह किया जिनसे एक पुत्र शुभेंदु शंकर का जन्म हुआ .1940 के दशक में पूर्व पत्नी से अलग होने के बाद नृत्यांगना कमला देवी के संपर्क में आए .उनसे संबंध तोड़ने के बाद उनके संबंध सुकन्या राजन से भी रहे.जिनसे 1981 में एक पुत्री अनुष्का शंकर पैदा हुई. . 1980 के दशक के अंत में उनका प्रेम संबंध न्यूयार्क कंसर्ट की निर्माता सु जोन्स से चर्चित रहा.जिनसे 1989 में पुत्री नोराह जोन्स का जन्म हुआ जो अमेरिका की प्रसिद्ध गायिका है .बता दें कि यह दोनों बेटियां ग्रेमी अवार्ड से सम्मानित हैं.

संगीत में रविशंकर का योगदान : भारतीय संगीत को पश्चिम में लोकप्रिय बनाने का श्रेय रविशंकर को ही जाता है.इसीलिए उन्हें शास्त्रीय संगीत का राजदूत कहा जाता है .1966 में बीटल समूह के सदस्य जॉर्ज हैरिसन से मुलाकात के बाद तो उनकी दिशा ही बदल गई .उन दिनों रॉक और जैज का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था.तभी रविशंकर के सितार के जादू ने सबका मन मोह लिया..उन्होंने जॉन कालत्रे, जिमि हैंड्रिक्स जैसे प्रसिद्ध संगीतज्ञों के साथ कई कार्यक्रम किये .यह रविशंकर ही थे जिन्होंने पूरब पश्चिम संगीत परम्पराओं के सम्मिश्रण से फ्यूजन म्यूजिक को सबके सम्मुख लाए. हिंदुस्तानी संगीत को रागों से समृद्ध बनाने में रविशंकर का बहुत योगदान है.आपने परमेश्वरी ,कामेश्वरी,मंगेश्वरी,जोगेश्वरी,वैरागीतोड़ी ,कौशिकतोड़ी,मोहनकौंस ,रसिया , मन मंजरी ,पंचम ,नट भैरव जैसे नए राग बनाए .यही नहीं पंडित रविशंकर का हिंदी सिनेमा भी योगदान रहा .'नीचा नगर ', धरती के लाल ' ऋषिकेश मुखर्जी की 'अनुराधा ', त्रिलोक जेटली की 'गोदान ',गुलजार की 'मीरा', सत्यजीत रे की 'पाथेर पांचाली ', अपराजितो ,और कपूर संसार प्रमुख है .आपने रिचर्ड एटनबरो की हिट फिल्म 'गाँधी' में भी संगीत निर्देशन किया जिसे ऑस्कर के लिए नामित किया गया.

पुरस्कार और सम्मान - पंडित रविशंकर को 1968 में पद्म भूषण ,1992 में मैग्सेसे पुरस्कार 1999 में भारत सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया .2010 में ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेलबोर्न ने डॉक्टर ऑफ़ लॉ से नवाजा गया.उन्हें ग्लोबल एम्बेसेडर का ख़िताब भी दिया गया .इसके अलावा भी उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान मिले .

उपसंहार : 20 वीं सदी के महान संगीतकार एवं सितारवादक पंडित रविशंकर ने भारतीय संगीत को एक नया आयाम दिया था .जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता .ऐसे स्वर साधक और शास्त्रीय संगीत के राजदूत बने पंडित रविशंकर वैसे तो हर ऋतु में याद आते हैं. लेकिन बरसात के मौसम में डॉक्टर उर्मिलेश ने रविशंकर का दोहे में यूँ स्मरण किया - रिमझिम - रिमझिम यों पड़ी सावन की बौछार , रविशंकर का देर तक बजता रहा सितार .

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