बिखरने को हर रोज़ उठता हूँ
बिखरने को हर रोज़ उठता हूँ
Share:

टूटने को
बिखरने को
हर रोज़ उठता हूँ
फिर शाम की मानिंद
ढलने को

चमकते लाल
ढलते सूरज को
हमेशा ही देखा है
उदास होकर
समंदर में समाते

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -