दो दिशाओं में बैठकर कभी ना करें भोजन
दो दिशाओं में बैठकर कभी ना करें भोजन
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शास्त्रों में हर काम के लिए सही दिशा निर्देशित की गई है. यानी हर काम को करने के लिए उसकी एक सही दिशा होती है जिसे हमे अपनाना चाहिए. सही दिशा में काम करने से हमे लाभ होता है, घर में वास्तु दोष नहीं होता और साथ ही किसी परेशानी से हमे गुज़रना नहीं पड़ता.  बात करें खाने की, तो इसके लिए भी शास्त्रों में एक दिशा बताई गई है और उसी दिशा में हमे बैठकर भोजन करना चाहिए. आइये बता देते हैं उस दिशा के बारे में जो आपको लाभ देगी.

भोजन करने से पहले अन्नदेवता, अन्नपूर्णा माता की स्तुति करनी चाहिए और अपने भोजन से एक ग्रास भगवान् के भोग के तौर पर निकाल देना चाहिए. जब भी भोजन बनाएं स्नान करके ही बनाएं जिससे रसोई में अन्नपूर्णा का वास रहता है. रोटी बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि पहली तीन रोटियां निकाल दें जो गाय की होगी, कुत्ते की होगी और तीसरी रोटी कौवे की होगी. इसके बाद आप अग्नि देव को भोग लगाकर भोजन ग्रहण कर सकते हैं.

भोजन करने अगर बैठ रहे हैं तो ध्यान रखें कि दक्षिण और पश्चिम दिशा में बैठकर कभी भोजन ना करें. दक्षिण दिशा में बैठने से पिता को दोष लगता है और पश्चिम दिशा में बैठने से आपको रोग का खतरा हो सकता है. इन दो दिशाओं में बैठकर कभी भोजन ना करें. भोजन करने के लिए हमेशा उत्तर दिशा में ही बैठना चाहिए.

इनके अलावा आप इन बातों का ध्यान रखें कि टूटे बर्तन में कभी ना खाएं, बिस्तर पर बैठकर या सोये हुए कभी भोजन ना करें साथ ही भोजन का कभी अपमान न करें. इससे अन्नपूर्णा का अपमान होता है. सूर्योदय के 2 घंटे बाद और सूर्यास्त से 2:30 घंटे पहले तक भोजन कर लेना चाहिए इससे पाचन क्रिया सही रहती है और प्रबल होती है.

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