भगवान ने उतारा भक्त आचार्य श्रील गोपाल भट्टजी का क़र्ज़ : सत्य कथा
भगवान ने उतारा भक्त आचार्य श्रील गोपाल भट्टजी का क़र्ज़ : सत्य कथा
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जब कोई भक्त सच्चे मन से अपने प्रभु की भक्ति में लीन हो जाता है तो प्रभु से भी अपने भक्त पर कृपा करे बगैर रहा नहीं जाता, ऐसी ही एक कहानी हमारे शास्त्रों में कही गयी है जो इस प्रकार है।

एक बार पूर्व आचार्य श्रील गोपाल भट्टजी ने बहुत बड़ा महोत्सव मनाया जिससे उन पर एक बनियां का कुछ कर्ज़ा हो गया। धन के अभाव में आचार्य यथा समय कर्ज़ नहीं चुका सके। जब आचार्य बहुत दिनों तक नहीं आए, बनिए ने निश्चय किया कि कल प्रातः काल आचार्य के घर जाकर, जैसे-तैसे रुपया वसूल किया जाए।

उधर भगवान श्रीराधारमण जी ने विचार किया कि प्रातः काल तो श्रीभट्ट मेरी सेवा-पूजा, राग-भोगादि के आनन्द में मग्न रहते हैं। यदि वह बनियां उस समय आया तो मेरे भक्त के आनंद में बाधा आएगी।

अतः भगवान स्वयं श्रीगोपाल भट्ट जी का रूप धारण कर बनिए के घर जाकर उसके रुपयों का भुगतान कर आए। संयोग से उस दिन किसी सेवक ने श्रील गोपाल भट्टजी को प्रचुर धनराशि भेंट की। आपने सोचा कि कल बनिए का कर्ज़ा चुकता कर दूंगा। दूसरे दिन जब श्रीभट्ट जी उस बनिए के घर गए और रुपया देने लगे तो उस बनिए ने कहा, महाराज! आप क्या कर रहे हैं? रुपया तो आप कल प्रातःकाल ही चुकता कर गए थे। श्रीगोपाल भट्ट समझ गए कि ये सब उनके श्रीराधारमणजी की ही लीला है। श्रीप्रभु कृपा विचार कर श्रीगोपाल भट्ट के नेत्र से आसू नहीं रुक पाए।

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