यहां हर कदम पर है ईश्वरीय अहसास
यहां हर कदम पर है ईश्वरीय अहसास
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नेपाल अध्यात्म की भूमि है और एक समय में यह जगह पूरी तरह से जिंदगी के आध्यात्मिक पहलुओं से जुड़ी हुई थी। दुर्भाग्य से इस देश को राजनैतिक और आर्थिकस्तर पर बेहद उठा-पटक और पतन का दौर देखना पड़ा। इसी वजह से वे अपने यहां हुए इस उम्दा काम को जो कई सौ सालों में हुआ था, सही तरह से सहेज कर नहीं रख पाए। जो हम आज देख रहे हैं, वे दरअसल बचे हुए अवशेष हैं। लेकिन जो कुछ भी बचा है, वह भी असाधारण है।

नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को कुछ मायनों में तमाम मंदिरों में सबसे प्रमुख माना जाता है। ‘पशुपति’का अर्थ है – पशु मतलब ‘जीवन’और ‘पति’मतलब स्वामी या मालिक, यानी ‘जीवन का मालिक’ या ‘जीवन का देवता’। पशुपतिनाथ दरअसल चार चेहरों वाला लिंग हैं। पूर्व दिशा की ओर वाले मुख को तत्पुरुष और पश्चिम की ओर वाले मुख को सद्ज्योत कहते हैं। उत्तर दिशा की ओर देख रहा मुख वामवेद है, तो दक्षिण दिशा वाले मुख को अघोरा कहते हैं। ये चारों चेहरे तंत्र-विद्या के चार बुनियादी सिद्धांत हैं। कुछ लोग ये भी मानते हैं कि चारों वेदों के बुनियादी सिद्धांत भी यहीं से निकले हैं। माना जाता है कि यह लिंग, वेद लिखे जाने से पहले ही स्थापित हो गया था और इससे कई पौराणिक कहानियां भी जुड़ी हुई हैं। इनमें से एक कहानी इस तरह है- कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद अपने ही बंधुओं की हत्या करने की वजह से पांडव बेहद दुखी थे। उन्होंने अपने भाइयों और सगे संबंधियों को मारा था। इसे गोत्र वध कहते हैं। उनको अपनी करनी का पछतावा था और वे खुद को अपराधी महसूस कर रहे थे। खुद को इस दोष से मुक्त कराने के लिए वे शिव की खोज में निकल पड़े।

लेकिन शिव नहीं चाहते थे कि जो जघन्य कांड उन्होंने किया है, उससे उनको इतनी आसानी से मुक्ति दे दी जाए। इसलिए पांडवों को अपने पास देखकर उन्होंने एक बैल का रूप धारण कर लिया और वहां से भागने की कोशिश करने लगे। लेकिन पांडवों को उनके भेद का पता चल गया और वे उनका पीछा करके उनको पकड़ने की कोशिश में लग गए। इस भागा दौड़ी के दौरान शिव जमीन में लुप्त हो गए और जब वह पुन: अवतरित हुए, तो उनके शरीर के टुकड़े अलग-अलग जगहों पर बिखर गए। नेपाल के पशुपतिनाथ में उनका मस्तक गिरा था और तभी इस मंदिर को तमाम मंदिरों में सबसे खास माना जाता है। केदारनाथ में बैल का कूबड़ गिरा था। बैल के आगे की दो टांगें तुंगनाथ में गिरीं। यह जगह केदार के रास्ते में पड़ता है। बैल का नाभि वाला हिस्सा हिमालय के भारतीय इलाके में गिरा। इस जगह को मध्य-महेश्वर कहा जाता है। यह एक बहुत ही शक्तिशाली मणिपूरक लिंग है। बैल के सींग जहां गिरे, उस जगह को कल्पनाथ कहते हैं। इस तरह उनके शरीर के अलग-अलग टुकड़े अलग-अलग जगहों पर मिले ।

उनके शरीर के टुकड़ों के इस तरह बिखरने का वर्णन कहीं न कहीं सात चक्रों से जुड़ा हुआ है। इन मंदिरों को इंसानी शरीर की तरह बनाया गया था। यह एक महान प्रयोग था- इसमें तांत्रिक संभावनाओं से भरपूर इंसान का एक बड़ा शरीर बनाने की कोशिश की गई थी। पशुपतिनाथ दो शरीरों का सिर है। एक शरीर दक्षिणी दिशा में हिमालय के भारतीय हिस्से की ओर है, दूसरा हिस्सा पश्चिमी दिशा की ओर है, जहां पूरे नेपाल को ही एक शरीर का ढांचा देने की कोशिश की गई थी। नेपाल को पांच चक्रों में बनाया गया था।

इस तरह से उन्होंने नेपाल की पूरी भौगोलिक स्थिति को इस्तेमाल करते हुए एक तांत्रिक शरीर की रचना की, ताकि वहां रहने वाले सभी लोग और हरेक प्राणी एक बड़े मकसद के साथ जिए। जब मैं तंत्र की बात करता हूं, तो मेरा मतलब स्वछंद यौन संबंधों से नहीं है। मेरा मतलब रस्मों, पूजा-पाठ के तरीकों या दूसरी बातों से भी नहीं है। दरअसल, मेरा मतलब जिंदगी को बनाने और मिटाने के विज्ञान से है। आप में से कइयों ने कुछ तांत्रिक तस्वीरें देखी होगी, जहां तंत्र-मंत्र करने वाले अपना सिर काटकर, उसे हाथ में लेकर चलते हैं। ये तस्वीर आपको यही बताने की कोशिश करते हैं कि तंत्र-मंत्र का अभ्यास करने वाला दरअसल जीवन देना और इसे नष्ट करना सीखता है। वह जीवन के एक रूप को दूसरा रूप दे सकता है। यही वजह है कि इस भूमि पर इतना बलि दी गई है। अगर आप यहां साल में कुछ खास मौकों पर आएं, तो इसी बलि की वजह से ही आपको काठमांडु की सड़के लाल रंग में रंगी नजर आएंगी। इसे जानवरों के अधिकारों से जोड़कर देखें, तो हो सकता है कि आप इसे पसंद न करें। लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूं कि उन्हे आपकी बलि देने से भी गुरेज नहीं होगा। दरअसल, उनका मकसद ही बिल्कुल अलग है। वे जिंदगी के बारे में आपकी तरह से नहीं सोचते हैं। आज भी इस सभ्यता की सोच पूरी तरह परम मुक्ति की है।

यहां एक जगह पर आपको जरूर जाना चाहिए और वह है भक्तपुर। यहां अवशेषों से आपको जानने को मिलेगा कि कभी पूर्वी संस्कृति कैसी होती थी। भक्तपुर एक ऐसा शहर है, जिसे इस तरह तैयार किया गया था कि यहां आने वाले को हर कदम पर ईश्वरीय शक्ति का आभास हो। भक्तपुर का मतलब भी यही है। तभी तो यहां हर पड़ाव वास्तव में एक मंदिर है। यहां पानी पीने की जगह भी एक मंदिर है, साफ-सफाई की जगह भी एक मंदिर है और यहां तक कि बात करने की जगह भी एक मंदिर ही है। यानी जब हम भक्तपुर में जाते हैं, तब हम वक्त के 1100 साल पुराने दौर में होते हैं। और सोचिए, तब वक्त कैसा होता होगा- जब महिलाएं सिर्फ लाल रंग के वस्त्रों में होतीं थीं और पुरुष सफेद रंग पहना करते थे। लोग ईंटों की जिन इमारतों में रहते थे, वो आज भी खड़ी हैं। यहां कई लोग आज भी उन्हीं घरों में रहते हैं, जहां 1100 साल पहले उनके पूर्वज रहते थे।

हालांकि भक्तपुर अब कई तरीकों से नष्ट होने की कगार पर है, लेकिन आज भी यहां आने पर आपको अहसास होगा कि हजारों साल पहले के लोगों में कैसा जबर्दस्त सौंदर्य-बोध था। किसी भी चीज को सिर्फ खूबसूरती देने में कितनी मेहनत की थी उन लोगों ने। लेकिन आज कंक्रीट की आधुनिक इमारतों, बेतरतीब से लगे साइन बोर्ड, प्लास्टिक की बोतलों और प्लास्टिक से बने दूसरे सामानो का ढेर देखकर और भक्तपुर की पतली गलियों से शोर मचाते व धुआं उगलते वाहनों को गुजरते देखकर तो लगता है कि हम पावन व पवित्र से भ्रष्ट व अपवित्र की ओर जा रहे हैं।

महज भौतिक सुख-सुविधाओं की ओर ध्यान ना देकर आध्यात्मिकता और मानव चेतना को समर्पित करते हुए किसी देश को बनाने की कल्पना पूरे विश्व में अनूठी है। ऐसा करने वाले देश शायद तिब्बत और नेपाल ही हैं। वैसे, दोनों ही देशों ने सारी तकनीक भारत से हासिल की और इसी मकसद पर अपने राष्ट्रकी स्थापना की है। दुर्भाग्यवश, 20वीं सदी तक आते-आते लोगों के जीवन में चीजों की अहमियत नाटकीय रूप से बदल गई। इसी वजह से बड़े पैमाने पर पुराना काम धराशायी हो गया और मिट गया। लेकिन इन जगहों पर काफी कुछ ऐसा है, जिसे मिटाया नहीं जा सकता। लोग मठ और मंदिर तो गिरा सकते हैं, लेकिन पुराने काम के कुछ आयाम ऐसे भी हैं, जिनको कभी मिटाया नहीं जा सकता

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