भारतीय धार्मिक मान्यता में आषाढ़ मास को बेहद पवित्र मास माना जाता है। इस मास में संत - महात्मा जहां पर विहार में या यात्रा में होते हैं वहीं अपना पड़ाव कर लेते हैं और वहीं पर विश्राम कर कथा - कीर्तन व सद्वचन से श्रद्धालुओं को भगवान की महिमा का बखान करते हैं। इस अवधि में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। दरअसल इस अवधि को अधिक मास, मलमास आदि के तौर पर जाना जाता है। मगर भगवान का गुण - गान इस अवधि में किया जाता है। दैविक कर्मों को सांसारिक फल की प्राप्ति के लिए प्रारंभ किया जाता है।
ये सभी कर्म इस माह वर्जित हो गए हैं। इस अवधि में गृह प्रवेश, मंुडन या यज्ञोपवित संस्कार, तिलक, उपनयन संस्कार, निजी उपयोग हेतु भूमि, वाहन, आभूषण आदि की खरीदी, सन्यास या शिष्य दीक्षा लेना, नववधू का प्रवेश किया जाना आदि अनुष्ठान वर्जित होते हैं। मगर ऐसे में पंसवन संस्कार, गर्भाधान संस्कार, सीमांत संस्कार, शल्य क्रिया, संतान के जन्म को लेकर किए जाने वाले कार्य, सूरज जलवा आदि किए जाते हैं। इस मास में यात्रा करना, साझेदारी के कार्य करना, मुकदमा लगाना, बीज बोना, वृक्ष लगाना, दान देना, सार्वजनिक हित के कार्य, सेवा कार्य करना आदि नहीं किए जा सकते हैं।
पुरूषोत्तम मास में भगवान श्रीकृष्ण, श्रीमदभगवतगीता, प्रभु श्रीराम और भगवान विष्णु की उपासना की जाती है। इस मास में गेहूं, चांवल, मूंग, जौ, मटर, तिल, ककड़ी, केला, आम, घी, सौंठ, इमली, सेंधा, नमक, आंवला आदि का भोजन किया जाता है। भोजन में भी प्याज, बैंगन, फूल गोभी, लहसून, उड़द, राई, मूली, गाजर आदि के साथ मांसाहार और मदिरा वर्जित होती है। यह ईश्वर आराधना के लिए उपयुक्त मास होता है।