भावुक हो अनुष्का ने 2 पेज ही भर डाले, आखिर ऐसा क्‍या लिखा!
भावुक हो अनुष्का ने 2 पेज ही भर डाले, आखिर ऐसा क्‍या लिखा!
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अभी हाल ही में हॉलीवुड के दिग्‍गज मेरिल स्‍ट्रीप ने गोल्‍डन ग्‍लोब अवार्ड के दौरान बेहद प्रेरणादायक भाषण दिया और अब यह इंटरनेट पर वायरल हो चुका है। पश्चिम ही नहीं, भारत में इसने अच्‍छी खासी बहस छेड़ दी है। बॉलीवुड स्‍टार प्रियंका चोपड़ा के बाद अब अनुष्‍का शर्मा भी उनके भाषण से बेहद प्रभावित हुई हैं।

अनुष्‍का ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपना दिल खोलकर इस पर लिखा है। दो भागों में लिखे पत्र में अनुष्‍का ने कलात्मक मूल्यों को कायम रखने के साथ ही अपने नज़रिये को अभिव्‍यक्‍त किया कि किस तरह नॉन जजमेंटल पर्सनालिटी उनके काम का हिस्‍सा है। आइये पढ़ते हैं अनुष्‍का ने क्‍या लिखा।

अनुष्‍का की कलम से...

"मेरी खुशनसीबी है कि मुझे इस समय की महान कलाकार मेरिल स्‍ट्रीप का काम देखने का मौका मिला। बेशक वे बिरली अदाकारा हैं और जैसा कि वाउला डेविस ने उनके बारे में कहा कि, वह ऐसी करामाती हैं कि आपकी ओर देखते हुए, आपको पढ़ते हुए आपकी भूमिका निभा देती हैं।

वे किसी भी किरदार को जीवंत कर सकती हैं। मुझे लगता है कि एक अभिनेता के काम को अक्‍सर लोग समझ नहीं पाते हैं। यह फिर भी ठीक है क्‍योंकि ये मुद्दा नहीं है।

जैसा कि मेरिल ने कहा कि एक अभिनेता का काम लोगों के जीवन में प्रवेश करना होता है जो कि हमसे अलग है और आपको इस बात का अहसास कराना है कि उसे क्‍या महसूस होता है।

अभिनेता लोग आमतौर पर उदारवादी सोच के व्‍यक्ति होते हैं क्‍योंकि यह उनके काम की अपेक्षा भी होती है। उदारवादी होना एक अभिनेता के लिए जरूरी है। उन्‍हें बहुत कुछ देखना, समझना, महसूस करना और जताना होता है और आखिर ऐसे इंसान को पर्दे पर निभाना होता है जो कि उनके खुद के व्‍यक्तित्‍व से अलग होता है।

ऐसा करते हुए वे जजमेंटल नहीं हो सकते। इसी से उनका प्रदर्शन बेहतरीन और जुड़ा हुआ बनता है। मुझे लगता है कि अच्‍छी फिल्‍में, अच्‍छे किरदारों के पास वह कूव्‍वत होती है कि जिससे वे दिमाग में ऐसी बात बैठा सकें कि आप कुछ नया ही सोचने लगें। यानी फिल्‍में लोगों को चीजों पर ज़ोर देना सिखाती हैं।

फिल्‍म निर्माण से जुड़े लोगों को सबसे पहले चारों तरफ निगाह भरकर देखना होता है। इसीलिए एक अच्‍छे कलाकार को हमेशा उदारवादी होना जरूरी है। लेकिन अगर लोग विचार जगाने वाले किरदारों को पर्दे पर देखते हैं तो वे हमेशा एकतरफा सोचने लगते हैं।

वे दूसरे आदमी के नज़रिये को नहीं जानना चाहते। यदि एक कलाकार जीवन में यही सोचेगा कि वह जो सोच रहा है वही सच है तो यह कलाकार की हार है।

मैं आज जो भी हूं वह इसलिए हूं कि मैंने जीवन में धारणाओं की चुनौतियों को झेला है। दुनिया ऐसे ही लोगों से बनी है जो इसे खूबसूरत बनाते हैं। मुझे नहीं पता कि मैं ये सब क्‍यों लिख रही हूं।

हो सकता है मैं बस खुद को अभिव्‍यक्‍त करना चाह रही हूं और लोगों को समझाने की कोशिश कर रही हूं कि कट्टरवादी सोच के कारण ये समाज टिक नहीं पाएगा और मुरझा जाएगा।"

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