प्रदर्शन अच्छा मगर कब सधेगा सोना ?
प्रदर्शन अच्छा मगर कब सधेगा सोना ?
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इन दिनों सभी के दिलों में एक बात छाई हुई है वह है रियो में इंडिया जियो। जी हां, आप अभी तक नहीं समझे। अरे भाई रियो ओलिंपिक के मैचों का प्रसारण खेल चैनलों पर हो रहा है। वह तो आपने देखा ही होगा। इन आयोजनों में भारतीय खिलाड़ी भी भागीदारी कर रहे हैं। भारतीय खिलाड़ियों ने अभी तक खेलों में अपने दमखम का प्रदर्शन किया है। हालांकि भारत ने कोई भी पदक हासिल नहीं किया है मगर फिर भी उम्मीद अभी भी शेष है।

भारतीय खिलाड़ियों की फिटनेस और उनका प्रदर्शन पहले के ओलिंपिक्स के मुकाबले इस बार सुधरा है। भारतीय खिलाड़ी विश्व के खिलाड़ियों से खेल स्पर्धाओं में अच्छी फाईट कर रहे हैं मगर स्वर्ण किस्मत वालों को मिलता है। हां, यहां भारतीय खेलप्रेमियों को निराशा जरूर हो रही होगी लेकिन इसमें केवल खिलाड़ियों को दोष देना उचित नहीं है। खिलाड़ी तो कई बार अपने बूते पर तक मेहनत करते हैं। हालांकि अब सरकार ने भी स्पोर्टस अथाॅरिटी आॅफ इंडिया की खेल अकादमियों की स्थापना कर खिलाड़ियों को उच्च स्तर का प्रदर्शन किया मगर फिर भी मेडल पर निशाना नहीं लग पाया।

ऐसा नहीं है कि भारतीय खिलाड़ियों ने प्रतिस्पर्धा में कमतरता बरती हो। तीरंदाजी में भारतीय दल ने विभिन्न सेटों में 9-9 के प्वाइंट पर निशाना साधा था। एयर पिस्टल शूटिंग में भी भारत ने अच्छे खेल का प्रदर्शन किया था मगर भारत मेडल नहीं जुटा पाया। अब कुश्ती में भारत से उम्मीद हो रही है। मगर अभी तक खाता न खुलने से भारतीय प्रशंसक निराश हैं। मगर निराशा से हटकर काफी कुछ सोचने की आवश्यकता है।

दरअसल भारत में जिस तरह से खेलों को लेकर रणनीति बनाई जाती है वह काफी हद तक प्रदर्शन को प्रभावित करती है। एयर पिस्टल व रायफल शूटिंग में खिलाड़ियों को संसाधन जुटाने में काफी मुश्किलें होती हैं यह एक महंगा खेल है। फिर भारत में क्रिकेट के अतिरिक्त दूसरे खेलों में प्रायोजक जुटाना काफी परेशानीभरा होता है। इतना ही नहीं खेल प्रतिभाओं को निखारने में राजनीति सबसे बड़ी बाधा बन जाती है। यदि हम कुश्ती का ही उदाहरण लें तो हम पाते हैं कि कुश्ती में पहलवान नरसिंह यादव को अपने चयन के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा।

कथिततौर पर उनके साथ साजिश हो गई और वे डोपिंग मामले में उलझ गए। ऐसा कई खिलाड़ियों के साथ भी हो सकता है। बाॅक्सर मैरी काॅम का संघर्ष भी बहुत रहा है। जब ये खिलाड़ी संघर्ष करते हैं तो कोई इन्हें पूछता नहीं है लेकिन जब इन्हें मेडल मिल जाता है तो दुनिया सर पर उठाती है। यह एक ताज्जुब की बात है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में कई खेल आयोजन अभावों और खेलों के अमानक पैमाने पर ही हो जाया करते हैं जबकि खेल प्रतिभा की निखार इसी स्तर से होती है। भारत ने खेलों में अच्छी प्रगति हासिल की है लेकिन फिर भी अभी कई चरण हैं जो भारत को छूने हैं।

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