विशेषज्ञों का दावा, आदिवासियों के सहयोग से बढ़ सकता है वन संरक्षण
विशेषज्ञों का दावा, आदिवासियों के सहयोग से बढ़ सकता है वन संरक्षण
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नई दिल्ली: भारतीय वन्यजीव संरक्षण पहल में शहरी निवासियों के स्थान पर स्थानीय जनजातीय समुदायों को शामिल किए जाने की आवश्यकता है, ताकि मनुष्यों और पशुओं के बीच शांतिपूर्ण माहौल सुनिश्चित किया जा सके. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गांधीनगर में सामाजिक विज्ञान की सहायक प्रोफेसर अंबिका अय्यादुरई ने बताया है कि वन्यजीव संरक्षण का पुनर्मूल्यांकन करने का वक़्त आ गया है.

वन्यजीव संरक्षण के स्थानीय जनसंख्या पर पड़ रहे प्रभावों का बारीकी से शोध कर रही अय्यादुरई ने मीडिया से कहा है कि, ‘‘ हमने राष्ट्रीय उद्यान का विचार कहीं और से लिया, हमें महसूस हुआ कि यह वन्य जीवन की रक्षा करेगा.’’  अय्यादुरई के मुताबिक भारत में वनों में हमेशा स्थानीय जनजातियों का अस्तित्व रहा है. वन्यजीव और मानव जनसंख्या शांतिपूर्ण और निरंतर रूप से सह-अस्तित्व में रहे. संरक्षण की नई अवधारणा स्थानीय लोगों को वहां से हटाने और वन के चारों तरफ बाड़ बनाने की है. वहीं साथ ही पर्यटकों को वहां जाने या खनन की इजाजत दी जा रही है.

अय्यादुरई ने कहा है कि, ‘‘ ऐसे कई शोध हैं जिनमें मध्यम वर्ग और पर्यावरण चेतना के बीच संबंध के बारे में पता चला है, आर्थिक रूप से हम जितने समृद्ध होते हैं, हम प्रकृति की उतनी ज्यादा प्रशंसा करने लगते हैं.’’ उन्होंने कहा है कि, ‘‘ वहीं दूसरी तरफ, बाघों के आवास या रिजर्व के  पास रहने वाले लोगों पर आप ध्यान करेंगे, तो वे इस बात की चिंता करते हैं कि खेतों की देखभाल कैसे की जाए और किस तरह मवेशियों की रक्षा की जाए.’

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