क्या आप जानते हैं अमावस्या तिथि के पीछे की कथा, जानिए यहाँ
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आप सभी को बता दें कि कल यानी 28 सितंबर को अमावस्या है. ऐसे में अमावस्या तिथि मनुष्य की जन्मकुंडली में बने हुए पितृदोष-मातृदोष से मुक्ति दिलाने के साथ-साथ तर्पण, पिंडदान एवं श्राद्ध के लिए अक्षय फलदायी मानी गई है और शास्त्रों में इस तिथि को 'सर्वपितृ श्राद्ध' तिथि भी माना गई है. ऐसे में इसके पीछे एक महत्वपूर्ण घटना बताई गई है.

कथा - देवताओं के पितृगण 'अग्निष्वात्त' जो सोमपथ लोक मे निवास करते हैं और उनकी मानसी कन्या, 'अच्छोदा' नाम की एक नदी के रूप में अवस्थित हुई और एक बार अच्छोदा ने एक हज़ार वर्ष तक निर्बाध तपस्या की.उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्यशक्ति परायण देवताओं के पितृगण 'अग्निष्वात्त' अच्छोदा को वरदान देने के लिए दिव्य सुदर्शन शरीर धारण कर आश्विन अमावस्या के दिन उपस्थित हुए.उन पितृगणों में 'अमावसु' नाम की एक अत्यंत सुंदर पितर की मनोहारी-छवि यौवन और तेज देखकर अच्छोदा कामातुर हो गयी और उनसे प्रणय निवेदन करने लगीं किन्तु अमावसु अच्छोदा की कामप्रार्थना को ठुकराकर अनिच्छा प्रकट की, इससे अच्छोदा अति लज्जित हुई और स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरी।

अमावसु के ब्रह्मचर्य और धैर्य की सभी पितरों ने सराहना की एवं वरदान दिया कि यह अमावस्या की तिथि 'अमावसु' के नाम से जानी जाएगी.जो प्राणी किसी भी दिन श्राद्ध न कर पाए वह केवल अमावस्या के दिन श्राद्ध-तर्पण करके सभी बीते चौदह दिनों का पुण्य प्राप्त करते हुए अपने पितरों को तृप्त कर सकते हैं.उसी के बाद से हर महीने की अमावस्या तिथि को सर्वाधिक महत्व दिया जाने लगा. वहीं यह तिथि 'सर्वपितृ श्राद्ध' के रूप में भी मानाई जाती है ( उसी पाप के प्रायश्चित हेतु कालान्तर में यही अच्छोदा महर्षि पराशर की पत्नी एवं वेदव्यास की माता बनी थी.तत्पश्यात समुद्र के अंशभूत शांतनु की पत्नी हुईं और दो पुत्र चित्रांगद तथा विचित्र वीर्य को जन्म दिया था इन्ही के नाम से कलयुग में 'अष्टका श्राद्ध' मनाया जाता है )

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