नई दिल्ली: प्रति वर्ष विश्वभर में एक अरब 30 करोड़ टन कचरा बर्बाद हो जाता है. इसमें से अधिकांश कृषि अपशिष्ट तो खेत में ही नष्ट कर दिया जाता है. कुछ कचरा मिलों-कारखानों से निकलता है तो कुछ रसोई घरों से. यदि अपने देश की बात करें तो यहां हर साल 35 करोड़ टन कृषि अपशिष्ट या कृषि कचरा पैदा होता है, जिसे हम बेकार मान लेते हैं, मगर वास्तव में ऐसा नहीं है.
अब इस कचरे के जरिए भी करोड़पति बना जा सकता है. हमारे वैज्ञानिक कई ऐसी विधियां और तकनीक तैयार कर रहे हैं, जिसका उपयोग कर कचरे को कंचन में तब्दील किया जा सकता है. नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का अनुमान है कि इस कचरे से हरी खाद के साथ ही प्रति वर्ष 18000 मेगा वॉट बिजली उत्पन्न की जा सकती है. कृषि और रसोई से निकलने वाले कचरे का हिस्सा बहुत अधिक है. एक रिपोर्ट के अनुसार, अकेले आलू को ही ले लीजिए तो पूरे विश्व में प्रति वर्ष लगभग एक करोड़ 20 लाख टन आलू बर्बाद हो जाता है. भारत में नष्ट होने वाले आलू का वजन 20 लाख टन है.
भारत सरकार ने जब 2014 में स्वच्छ भारत अभियान आरंभ किया, तो कृषि कचरे को कामयाब बनाने पर भी गंभीरता से मंथन हुआ. खास तौर से ऐसे उत्पाद बनाने का विचार आया, जो या तो मनुष्यों के काम आ सके या फिर पशुओं के या फिर फसल के काम आ सके. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने इसमें अहम भूमिका निभाई. ICAR ने सभी संस्थानों के साथ मिलकर ऐसी प्रसंस्करण तकनीक पर काम आरंभ किया है, जो कचरे से पैसे बना सके. इसके तहत जूट के कचरे से कागज बनाए जा रहे हैं, इसके साथ ही कृषि अपशिष्ट का इस्तेमाल खाद और पशुचारा बनाने के लिए भी किया जा रहा है.
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